________________
सिरि-भगवंत-पुष्फदंत-भूदबलि-पणीदो
छक्खंडागमो तस्स चउत्थेखंडे-वेयणाए
६. वेयणकालविहाणं वेयणकालविहाणे ति । तत्थ इमाणि तिण्णि अणियोगद्दाराणि गादव्वाणि भवंति ॥१॥
___ अब वेदनाकालविधान अनुयोगद्वार अधिकारप्राप्त है। उसमें ये तीन अनुयोगद्वार जानने योग्य हैं ॥ १॥
यहां नामकाल, स्थापनाकाल, द्रव्यकाल, सामाचारकाल, अद्धाकाल, प्रमाणकाल और भावकालके भेदसे काल सात प्रकारका है। उनमें 'काल' यह शब्द नामकाल है। 'वह यह काल है' इस प्रकार जो बुद्धिसे अन्य द्रव्यमें कालका आरोप किया जाता है वह स्थापनाकाल कहलाता है।
आगम द्रव्यकाल व नोआगमद्रव्यकालके भेदसे द्रव्यकाल दो प्रकारका है। उनमें काल प्राभृतका जानकार होता हुआ जो जीव वर्तमानमें तद्विषयक उपयोगसे रहित है वह आगमद्रव्यकाल है। नोआगमद्रव्यकाल, ज्ञायकशरीर नोआगमद्रव्यकाल, भावी नोआगमद्रव्यकाल और तद्व्यतिरिक्त नोआगमद्रव्यकालके भेदसे तीन प्रकारका है। इनमें भी तद्व्यतिरिक्त नोआगमद्रव्यकाल प्रधान और अप्रधानके भेदसे दो प्रकारका है। उनमें लोकाकाशके प्रदेश (असंख्यात) प्रमाण जो काल द्रव्य है वह प्रधान द्रव्यकाल है। वह शेष पांच द्रव्योंके परिणमनका कारण होकर रत्नोंकी राशिके समान प्रदेशसमूहसे रहित होता हुआ अमूर्त व अनादिनिधन है। अप्रधान द्रव्यकाल सचित्त, अचित्त और मिश्रके भेदसे तीन प्रकारका है। इनमें दंशकाल व मशककाल आदि सचित्तकाल है । धूलिकाल, कर्दमकाल, उष्णकाल, वर्षाकाल एवं शीतकाल आदि अचित्तकाल है । डांसोंके साथ प्रवर्तमान शीतकाल आदि मिश्रकाल कहा जाता है। सामाचारकाल लौकिक और लोकोत्तरीयके भेदसे दो प्रकारका है। उनमें कर्षण (जोतना) और बीज बोने आदिका काल लौकिक सामाचार काल माना जाता है । वंदनाकाल, नियमकाल, स्वाध्यायकाल और ध्यानकाल आदिको लोकोत्तरीयकाल जानना चाहिये । अद्धाकाल, अतीत अनागत और वर्तमानके भेदसे तीन प्रकारका है । पल्योपम, सागरोपम, उत्सर्पिणी एवं अवसर्पिणी आदिरूप काल प्रमाणकाल है जो अनेक प्रकारका है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org