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वेयणमहाहियारे वेयणकालविहाणे सामित्तं [४, २, ६, २६ अण्णदरस्स चरिमसमयभवसिद्धियस्स तस्स वेयणीयवेयणा कालदो जहण्णा ॥
जो भी जीव भव्यसिद्धिककालके अन्तिम समयमें स्थित है उसके वेदनीयकी वेदना कालकी अपेक्षा जघन्य होती है ॥ १९ ॥
अभिप्राय यह है कि अयोगिकेवली गुणस्थानके अन्तिम समयमें वर्तमान भव्य जीवके उक्त वेदनीय कर्मकी वेदना जघन्य होती है, क्योंकि, वहां उसकी एक समय मात्र ही स्थिति शेष रहती है।
तव्वदिरित्तमजहण्णा ॥ २० ॥ उस जघन्य वेदनासे भिन्न उसकी अजघन्य स्थितिवेदना होती है ॥ २० ॥ इसके भी स्वामियोंकी विविधता यथा सम्भव वेदनीय कर्मके समान ही समझना चाहिये । एवं आउअ-णामागोदाणं ॥ २१ ॥
इसी प्रकार आयु, नाम और गोत्र कर्मोकी भी जघन्य एवं अजघन्य कालवेदनाओंकी प्ररूपणा करना चाहिये ॥ २१ ॥
सामित्तेण जहण्णपदे मोहणीयवेयणा कालदो जहणिया कस्स ? ॥ २२ ॥
स्वामित्वके आश्रयसे जघन्य पदविषयक मोहनीय कर्मकी वेदना कालकी अपेक्षा जघन्य किसके होती है ? ॥ २२ ॥ ___ अण्णदरस्स खवगस्स चरिमसमयसकसाइयस्स मोहणीयवेयणा कालदो जहण्णा ।।
जो भी क्षपक सकषाय अवस्थाके अन्तिम समयमें स्थित है उसके मोहनीय कर्मकी वेदना कालकी अपेक्षा जघन्य होती है ॥ २३ ॥
___ अभिप्राय यह है कि सूक्ष्म साम्पराय गुणस्थानके अन्तिम समयमें वर्तमान क्षपक जीवके उस मोहनीय कर्मकी वेदना कालकी अपेक्षा जघन्य होती है ।
तव्यदिरित्तमजहण्णा ॥२४॥
मोहनीय कर्मकी उक्त जघन्य वेदनासे भिन्न उसकी अजघन्य वेदना होती है ॥ २४ ॥ स्वामित्व समाप्त हुआ ।
अप्पाबहुए ति । तत्थ इमाणि तिण्णि अणिओगद्दाराणि-जहण्णपदे उक्कस्सपदे जहण्णुक्कस्सपदे ॥ २५॥
अब अल्पबहुत्व अनुयोगद्वार अधिकार प्राप्त है। उसमें ये तीन अनुयोगद्वार हैं- जघन्य पदमें, उत्कृष्ट पदमें और जघन्य-उत्कृष्ट पदमें ॥ २५ ॥
जहण्णपदेण अट्ठण्णं पि कम्माणं वेयणाओ कालदो जहणियाओ तुल्लाओ ॥२६॥ जघन्य पदके आश्रित आठों ही कर्मोकी, कालकी अपेक्षा जघन्य वेदनायें तुल्य हैं ।
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