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छक्खंडागमे वेयणाखंड
[४, २, ६, ४५
कालविहाणे पढमा चूलिया एत्तो मूलपयडिविदिबंधे पुव्वं गमणिज्जे तत्थ इमाणि चत्तारि अणियोगद्दाराणि हिदिबंधट्ठाणपरूवणा णिसेयपरूवणा आबाधाकंदयपरूवणा अप्पाबहुए त्ति ॥ ३६॥
अब यहां मूलप्रकृतिस्थितिबन्धपूर्वमें ज्ञातव्य है। उसमें ये चार अनुयोगद्वार हैं- स्थितिबन्धस्थानप्ररूपणा, निषेकप्ररूपणा, आबाधाकाण्डकप्ररूपणा और अल्पबहुत्व ॥ ३६॥
___ पूर्वोक्त पदमीमांसादि तीन अनुयोगद्वारोंसे काल विधानकी प्ररूपणा की जा चुकी है। अब यहां इस कालविधानमें प्ररूपित अर्थोके विवरणरूप यह चूलिका प्राप्त हुई है। चूंकि पूर्वोक्त विषयके बोधका कारण मूलप्रकृतिस्थितिबन्ध है, अत एव उसके ज्ञापन में ये चार अनुयोगद्वार प्राप्त होते हैं । यह इसका अभिप्राय जानना चाहिये ।
हिदिबंधट्ठाणपरूवणदाए सव्वत्थोवा सुहुमेइंदियअप्पज्जत्तयस्स द्विदिबंधट्ठाणाणि ॥
स्थितिबन्धस्थानप्ररूपणाकी अपेक्षा सूक्ष्म एकेन्द्रिय अपर्याप्तके स्थितिबन्धस्थान सबसे स्तोक हैं ॥ ३७ ॥
बादरेइंदियअपज्जत्तयस्स हिदिबंधट्ठाणाणि संखेज्जगुणाणि ॥ ३८ ॥ उनसे बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्तकके स्थितिबन्धस्थान संख्यातगुणे हैं ॥ ३८ ॥ सुहुमेइंदियपज्जत्तयस्स हिदिबंधट्ठाणाणि संखेज्जगुणाणि ॥ ३९ ॥ उनसे सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्तकके स्थितिबन्धस्थान संख्यातगुणे हैं ॥ ३९ ॥ बादरेइंदियपज्जत्तयस्स द्विदिबंधट्ठाणाणि संखेज्जगुणाणि ॥ ४० ॥ उनसे बादर एकेन्द्रिय पर्याप्तकके स्थितिबन्धस्थान संख्यातगुणे हैं ॥ ४० ॥ बीइंदियअपज्जत्तयस्स द्विदिबंधट्ठाणाणि असंखेज्जगुणाणि ॥ ४१ ॥ उनसे द्वीन्द्रिय अपर्याप्तकके स्थितिबन्धस्थान असंख्यातगुणे हैं ॥ ४१ ॥ तस्सेव पज्जत्तयस्स हिदिबंधट्ठाणाणि संखेज्जगुणाणि ॥ ४२ ॥ उनसे उसीके पर्याप्तकके स्थितिबन्धस्थान संख्यातगुणे हैं ॥ ४२ ॥ तीइंदियअपज्जत्तयस्स द्विदिबंधट्ठाणाणि संखेज्जगुणाणि ॥ ४३॥ उनसे त्रीन्द्रिय अपर्याप्तकके स्थितिबन्धस्थान संख्यातगुणे हैं ॥ ४३ ॥ तस्सेव पज्जत्तयस्स द्विदिबंधट्ठाणाणि संखेज्जगुणाणि ॥४४॥ उनसे उसके ही पर्याप्तकके स्थितिबन्धस्थान संख्यातगुणे हैं ॥ ४४ ॥ चउरिंदियअपज्जत्तयस्स द्विदिबंधट्ठाणाणि संखेज्जगुणाणि ॥ ४५ ॥ उनसे चतुरिन्द्रिय अपर्याप्तकके स्थितिबन्धस्थान संख्यातगुणे हैं ॥ ४५ ॥
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