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४, २, ४, १०३ ] छक्खंडागमे वेयणाखंडं
[५५५ उपशमा कर तथा पल्योपमके असंख्यातवें भाग प्रमाण संयमासंयमकाण्डकों व सम्यक्त्वकाण्डकोंका पालन करके; इस प्रकार परिभ्रमण करके अन्तिम भवग्रहणमें फिरसे भी जो पूर्वकोटि आयुवाले मनुष्योंमें उत्पन्न हुआ है ॥ १०२ ॥
सव्वलहुं जोणिणिक्खमणजम्मणेण जादो अट्ठवस्सीओ ॥ १०३ ॥ वहां जो सर्वलघु कालमें योनिनिष्क्रमण रूप जन्मसे उत्पन्न होकर आठ वर्षका हुआ है। संजमं पडिवण्णो ॥१०४॥ आठ वर्षका होनेपर जो संयमको प्राप्त हुआ है ॥ १०४ ॥ अंतोमुहुत्तेण खवणाए अब्भुद्विदो ॥१०५ ।। इस प्रकार संयमको प्राप्त करके जो अन्तर्मुहूर्तमें क्षपणाके लिये उद्यत हुआ है ॥१०५॥ अंतोमुहुत्तेण केवलणाणं केवलदंसणं च समुप्पादइत्ता केवली जादो ॥१०६॥ तत्पश्चात् जो अन्तर्मुहूर्तमें केवलज्ञान और केवलदर्शनको उत्पन्न कर केवली हो गया है ।
तत्थ य भवविदिं पुवकोडिं देसूणं केवलिविहारेण विहरित्ता थोवावसेसे जीविदबए त्ति चरिमसमयभवसिद्धियो जादो ॥ १०७ ॥
वहां कुछ कम पूर्वकोटि मात्र भवस्थिति प्रमाण काल तक केवलीके रूपमें विहार करके जीवितके थोडासा शेष रह जानेपर जो अन्तिम समयवर्ती भव्यसिद्धिक हुआ है ।। १०७ ॥
तस्स चरिमसमयभवसिद्धियस्स वेदणीयवेयणा जहण्णा ॥१०८ ॥ उस अन्तिम समयवर्ती भव्यसिद्धिकके वेदनीयकी वेदना द्रव्यकी अपेक्षा जघन्य होती है । तव्वदिरित्तमजहण्णा ॥१०९॥ उपर्युक्त वेदनाके विरुद्ध उसकी जघन्य वेदना द्रव्यकी अपेक्षा अजघन्य होती है॥१०॥ एवं णामा-गोदाणं ॥ ११०॥
इसी प्रकार द्रव्यकी अपेक्षा नाम व गोत्र कर्मकी भी जघन्य एवं अजघन्य वेदनाकी प्ररूपणा करना चाहिये ॥ ११०॥
जिस प्रकार वेदनीय कर्मके जघन्य व अजघन्य द्रव्यकी प्ररूपणा की गई है उसी प्रकार नाम और गोत्र कर्मकी भी प्ररूपणा करना चाहिये; क्योंकि, उससे इसमें कोई विशेषता नहीं है।
सामित्तेण जहण्णपदे आउगवेदणा दव्वदो जहणिया कस्स ? ॥ १११ ॥
स्वामित्वकी अपेक्षा जघन्य पदमें आयु कर्मकी वेदना द्रव्यकी अपेक्षा जघन्य किसके होती है ? ॥ १११ ॥
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