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४, २, ५, ७] 2 छक्खंडागमे वेयणाखंडं
[५६९ इस प्रकार पदमीमांसाको समाप्त करके अब आगे स्वामित्व अधिकारके आश्रित प्ररूपणा की जाती है
सामित्तण उक्कस्सपदे णाणावरणीयवेयणा खेत्तदो उक्कस्सिया कस्स ? ॥७॥
स्वामित्व अधिकारके आश्रयसे ज्ञानावरणीयकी वेदना क्षेत्रकी अपेक्षा उत्कृष्ट किसके होती है ? ॥ ७॥
जो मच्छो जोयणसहस्सिओ सयंभुरमणसमुदस्स बाहिरिल्लए तडे अच्छिदो ॥८॥
जो एक हजार योजनकी अवगाहनावाला मत्स्य स्वयम्भूरमण समुद्रके बाह्य तटपर स्थित है ॥ ८ ॥
__ यहां स्वयम्भूरमण समुद्रके बाह्य तटसे उस समुद्र के परभागवर्ती भूमिप्रदेशको ग्रहण करना चाहिये, न कि उसकी अवयवभूत बाह्य वेदिकाको; क्योंकि, वहां आगेके सूत्र (९) में निर्दिष्ट तनुवातवलयके संसर्गकी सम्भावना नहीं है ।
वेयणसमुग्धादेण समुहदो ॥९॥ जो वेदनासमुद्घातसे समुद्धात अवस्थाको प्राप्त हुआ है ॥ ९ ॥
वेदनाके वश होकर जीवके प्रदेश जो विस्तार व ऊंचाईमें तिगुणे फैल जाते हैं उसका नाम वेदनासमुद्घात है । इस वेदनासमुद्घातमें सबके आत्मप्रदेश तिगुणे ही फैलते हों ऐसा यद्यपि नियम नहीं है, क्योंकि, उसमें यथायोग्य वेदनाके अनुसार एक दो प्रदेशों आदिकी भी वृद्धि सम्भव है; परन्तु उत्कृष्ट क्षेत्रका अधिकार होनेसे ऐसे वेदनासमुद्धातोंकी यहां विवक्षा नहीं है, यह इस सूत्रका अभिप्राय समझना चाहिये ।
कायलेस्सियाए लग्गो ॥१०॥ जो काकलेश्यासे संलग्न है ॥ १० ॥
काकलेश्यासे अभिप्राय तनुवातवलयका है। कारण यह कि उसका वर्ण काक (कौवे) के समान है। अभिप्राय यह है कि किसी पूर्ववैरी देवके द्वारा स्वयम्भूरमण समुद्रसे उठाकर जो महामत्स्य उसके बाह्य भागमें लोकनालीके समीप पटका गया है तथा जो वहां तीव्र वेदनाके वशीभूत होकर वेदनासमुद्घातसे परिणत होता हुआ तनुवातवलयसे सम्बद्ध लोकनालीके बाह्यभाग तक अपने आत्मप्रदेशोंसे संलग्न हुआ है।
पुणरविमारणंतियसमुग्धादेण समुहदो तिण्णि विग्गहकंदयाणि कादूण ॥ ११ ॥
फिर भी जो तीन विग्रहकाण्डकोंको करके मारणान्तिक समुद्घातसे समुद्घातको प्राप्त हुआ है ॥ ११ ॥
विग्रहका अर्थ कुटिलता या मोड़ है । तथा काण्डकका अर्थ बाणके समान सीधी गति है । अभिप्राय यह कि जिस महामत्स्यने वहां वेदनासमुद्घातपूर्वक मारणान्तिक समुद्घातको प्राप्त
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