________________
४, २, ५, २०] छक्खंडागमे वेयणाखंडं
[ ५७१ स्वामित्वसे जघन्य पदोंके आश्रित ज्ञानावरणीयकी वेदना क्षेत्रकी अपेक्षा किसके होती है ? ॥ १९॥
अण्णदरस्स सुहुमणिगोदजीवअपज्जत्तयस्स तिसमयआहारायस्स तिसमयतब्भवत्थस्स जहण्णजोगिस्स सव्वजहणियाए सरीरोग्गाहणाए वट्टमाणस्स तस्स णाणावरणीयवेयणा खेत्तदो जहण्णा ॥२०॥
___ अन्यतर सूक्ष्म निगोद जीव लब्ध्यपर्याप्तक, जो कि त्रिसमयवर्ती आहारक होता हुआ तद्भवस्थ होनेके तृतीय समयमें वर्तमान है, जघन्य योगवाला है, और शरीरकी सर्वजघन्य अवगाहनामें वर्तमान है; अन्य सूक्ष्म निगोद लब्ध्यअपर्याप्तक जीवके ज्ञानावरणीयकी वेदना क्षेत्रकी अपेक्षा जघन्य होती है ॥ २० ॥
तव्वदिरित्तमजहण्णा ॥२१॥ उससे भिन्न उक्त ज्ञानावरणीय कर्मकी अजघन्य वेदना होती हैं ॥ २१ ॥ एवं सत्तण्णं कम्माणं ॥ २२ ॥
जिस प्रकार ज्ञानावरणीय कर्मकी जघन्य व अजघन्य क्षेत्रवेदनाओंकी प्ररूपणा की गई है उसी प्रकार शेष सात कर्मोकी जघन्य व अजघन्य क्षेत्रवेदनाओंकी प्ररूपणा करना चाहिये ॥२२॥
अप्पाबहुए त्ति । तत्थ इमाणि तिण्णि अणिओगद्दाराणि-जहण्णपदे उक्कस्सपदे जहणुक्कस्सपदे ॥ २३ ॥
अब यहां अल्पबहुत्वका अधिकार है। उसकी प्ररूपणामें ये तीन अनुयोगद्वार हैंजघन्य पदमें, उत्कृष्ट पदमें और जघन्योत्कृष्ट पदमें ॥ २३ ॥
जहण्णपदे अट्ठण्णं पि कम्माणं वेयणाओ तुल्लाओ ।। २४ ॥ जघन्य पदमें आठों ही कर्मोकी क्षेत्र वेदनायें समान हैं ॥ २४ ॥
इसका कारण यह है कि आठों ही कर्मोंकी वह जघन्य क्षेत्रवेदना तृतीय समयवर्ती आहारक होकर उस भवोमें अवस्थित होनेके तृतीय समयमें वर्तमान सूक्ष्म निगोद लब्ध्यपर्याप्तक जीवके ही होती है।
उक्कस्सपदे णाणावरणीय-दंसणावरणीय-मोहणीय-अंतराइयाणं वेयणाओ खेत्तदो उक्कस्सियाओ चत्तारि वि तुल्लाओ थोवाओ ॥ २५ ॥
उत्कृष्ट पदके आश्रयसे ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, मोहनीय और अन्तराय इन कर्मोंकी वेदनायें क्षेत्रकी अपेक्षा उत्कृष्ट चारों ही समान व स्तोक हैं ॥ २५ ॥
वेयणीय-आउअ-णामा-गोदवेयणाओ खेत्तदो उक्कस्सियाओ चत्तारि वि तुल्लाओ असंखेज्जगुणाओ ॥ २६ ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org