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वेयणमहाहियारे वेयणखत्तविहाणे सामित्तं [४, २, ५, १९ होते हुए विग्रहगतिमें दो विग्रहों (मोंडों) के साथ तीन काण्डकोंको किया है । वे तीन काण्डक इस प्रकार जानने चाहिये- वह लोकनालीकी वायव्यदिशासे बाणके समान सीधी गतिके साथ साधिक अर्ध राजुमात्र दक्षिण दिशामें आया । यह एक काण्डक हुआ । पश्चात् वहांसे मुड़कर फिर बाणके समान सीधी गतिसे एक राजुमात्र पूर्व दिशामें आया । यह दूसरा काण्डक हुआ। तत्पश्चात् वहांसे मुड़कर फिर भी सीधी गतिमें छह राजुमात्र नीचे गया। यह तीसरा काण्डक हुआ। इस प्रकारसे जो तीन विग्रहकाण्डकोंको करके मारणान्तिक समुद्घातको प्राप्त हुआ है।
से काले अधो सत्तमाए पुढवीए णेरइएमु उप्पज्जहिदित्ति तस्स णाणावरणीयवेयणा खेत्तदो उक्कस्सा ॥ १२ ॥
इस प्रकारसे जो अनन्तर समयमें नीचे सातवीं पृथिवीमें उत्पन्न होनेवाला है उस उपयुक्त महामत्स्यके ज्ञानावरणीयकी वेदना क्षेत्रकी अपेक्षा उत्कृष्ट होती है ॥ १२ ॥
तव्वदिरित्ता अणुक्कस्सा ॥ १३ ॥ महामत्स्यके उपर्युक्त उत्कृष्ट क्षेत्रसे भिन्न उक्त ज्ञानावरण कर्मकी अनुत्कृष्ट वेदना है ॥ एवं दंसणावरणीय-मोहणीय-अंतराइयाणं ॥ १४ ॥
इसी प्रकार दर्शनावरणीय, मोहनीय और अन्तराय कोके भी उत्कृष्ट व अनुत्कृष्ट वेदना क्षेत्रोंकी प्ररूपणा करना चाहिये ॥ १४ ॥ पदमीमांसा समाप्त हुई ॥
सामित्तेण उक्कस्सपदे वेदणीयवेदणा खेत्तदो उक्कस्सिया कस्स ? ॥ १५ ॥ स्वामित्त्वसे उत्कृष्ट पदमें वेदनीय कर्मकी वेदना क्षेत्रकी अपेक्षा उत्कृष्ट किसके होती है ? ।।
अण्णदरस्स केवलिस्स केवलिसमुग्धादेण समुहदस्स सबलोगं गदस्स तस्स वेदणीयवेदणाखेत्तदो उक्कस्सा ॥ १६ ॥
केवलिसमुद्घातसे समुद्घातको प्राप्त होकर उसमें लोकपूरण अवस्थाको प्राप्त हुए अन्यतर केवलीके उस वेदनीय कर्मकी वेदना क्षेत्रकी अपेक्षा उत्कृष्ट होती है ॥ १६ ॥
सूत्रमें जो ‘अन्यतर' शब्दका प्रयोग किया गया है-- उससे अवगाहनाभेदों और भरतादि क्षेत्र विशेषोंका प्रतिषेध समझना चाहिये ।
तव्वदिरित्ता अणुक्कस्सा ॥ १७ ॥ उक्त उत्कृष्ट क्षेत्रवेदनासे भिन्न उस वेदनीय कर्मकी क्षेत्रवेदना अनुत्कृष्ट होती है ॥१७॥ एवमाउव-णामा-गोदाणं ॥१८॥
इस प्रकार आयु नाम व गोत्र कर्मके उत्कृष्ट एवं अनुत्कृष्ट वेदनाक्षेत्रोंकी प्ररूपणा करना चाहिये । ॥ १८ ॥
सामित्तेण जहण्णपदे णाणावरणीयवेयणा खेत्तदो जहण्णि या कस्स १ ॥ १९ ॥
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