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यणमहाहियारे वेयणदव्वविहाणे सामित्तं [४, २, ४, ११९ ... जो जीवो पुवकोडाउओ अधो सत्तमाए पुढवीए णेरइएसु आउअंबंधदि रहस्साए आउअबंधगद्धाए ॥ ११२ ॥
___ जो पूर्वकोटिकी आयुवाला जीव नीचे सप्तम पृथिवीके नारकियोंमें थोड़े आयुबन्धक काल द्वारा आयुको बांधता है ॥ ११२ ॥
जो पूर्वकोटि आयुवाला जीव सातवीं पृथिवीकी आयुको बांधता है वह अवलम्बनाकरणके द्वारा आयुकर्मके बहुतसे द्रव्यको गलाता है, इसीलिये यहां पूर्वकोटि आयुवाले जीवको ग्रहण किया गया है। परभव सम्बन्धी आयुकर्मके उपरिम द्रव्यका अपकर्षण वश नीचे गिरनेका नाम अवलम्बनाकरण है।
तप्पाओग्गजहण्णएण जोगेण बंधदि ॥ ११३ ॥ उसे तत्प्रायोग्य जघन्य योगसे बांधता है ॥ ११३ ॥ जोगजवमज्झस्स हेढदो अंतोमुहत्तद्धमच्छिदो ॥ ११४ ॥ योगयवमध्यके नीचे अन्तर्मुहूर्त काल तक रहा है ॥ ११४ ॥ पढमे जीवगुणहाणिट्ठाणंतरे आवलियाए असंखेज्जदिभागमच्छिदो ॥ ११५ ॥ प्रथम जीवगुणहानिस्थानान्तरमें आवलीके असंख्यातवें भाग काल तक रहा ॥ ११५ ॥ कमेण कालगदसमाणो अधो सत्तमाए पुढवीए गेरइएसु उववण्णो ॥ ११६ ॥ फिर क्रमसे मृत्युको प्राप्त होकर नीचे सातवीं पृथिवीके नारकियोंमें उत्पन्न हुआ ॥११६॥
जिसने परभव सम्बन्धी आयुको बांध लिया है वह कदलीघात नहीं करता है, यह नियम है। इसीलिये जो अन्तर्मुहूर्त कम पूर्वकोटिके त्रिभाग तक अवलम्बनाकरणको करके व अपवर्तनाघातके द्वारा परभविक आयुको न घातकर नारकियोंमें उत्पन्न हुआ है, यह सूत्रका अभिप्राय समझना चाहिये ।
तेणेव पढमसमयआहारएण पढमसमयतब्भवत्थेण जहण्णजोगेण आहारिदो ॥
उसी प्रथम समयवर्ती आहारक और प्रथम समयवर्ती तद्भवस्थ जीवने जघन्य उपपाद योगके द्वारा आहारग्रहण किया ॥ ११७ ॥
जहणियाए वढ्डीए वढ्डिदो ॥ ११८॥ जघन्य वृद्धिसे वृद्धिको प्राप्त हुआ ॥ ११८ ॥ अंतोमुहुत्तेण सव्वचिरेण कालेण सव्वाहि पज्जत्तीहि पज्जत्तयदो ॥ ११९ ॥ अन्तर्मुहूर्तस्वरूप सर्वदीर्घकाल द्वारा पर्याप्तियोंसे पर्याप्त हुआ ॥ ११९ ॥
पर्याप्तकालमें जितना आयुका अपकर्षण होता है, उसकी अपेक्षा वह अपर्याप्तकालमें जघन्य योगके द्वारा बहुत हुआ करता है। इसीलिये प्रकृत सूत्रमें अपर्याप्तकालकी दीर्घता सूचित की गई है।
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