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४, २, ४, १९७] छक्खंडागमे वेयणाखंडं
[५६५ नानायोगदुगुणवृद्धि-हानिस्थानान्तर स्तोक हैं। उनसे एक योगदुगुणवृद्धि-हानिस्थानान्तर असंख्यातगुणा है ॥ १९६ ॥
समयपरूवणदाए चदुसमझ्याणि जोगट्ठाणाणि सेडीए असंखेज्जदिभागमेत्ताणि ॥
समयप्ररूपणाके अनुसार चार समय रहनेवाले योगस्थान श्रेणिके असंख्यातवें भाग मात्र हैं ॥ १९७ ॥
पंचसमइयाणि जोगट्ठाणाणि सेडिए असंखेज्जदिभागमेत्ताणि ॥ १९८॥ पांच समयवाले योगस्थान श्रेणिके असंख्यातवें भाग मात्र है ॥ १९८ ॥
एवं छसमइयाणि सत्तसमइयाणि अट्ठसमइयाणि जोगट्ठाणाणि सेडीए असंखेज्जदिभागमेत्ताणि ॥ १९९॥
. इसी प्रकार छह समयवाले, सात समयवाले और आठ समयवाले योगस्थान श्रेणिके असंख्यातवें भाग मात्र हैं ॥ १९९ ॥
पुणरवि सनसमइयाणि छसमइयाणि पंचसमइयाणि चदुसमइयाणि उवरि तिसमइयाणि बिसमइयाणि जोगट्ठाणाणि सेडीए असंखेज्जदिभागमेत्ताणि ॥ २०० ॥
__फिरसे भी सात समयवाले, छह समयवाले, पांच समयवाले, चार समयवाले तथा ऊपर तीन समयवाले व दो समयवाले योगस्थान श्रेणिके असंख्यातवें भाग मात्र हैं ॥ २०० ॥
वड्ढिपरूवणदाए अत्थि असंखेज्जभागवड्ढि - हाणि संखेज्जभागवड्ढि - हाणि संखेज्जगुणवढि-हाणी असंखेज्जगुणवड्ढि-हाणी ॥ २०१॥
वृद्धिप्ररूपणाके अनुसार योगस्थानोंमें असंख्यातभाग वृद्धि-हानि, संख्यातभागवृद्धि-हानि, संख्यातगुणवृद्धि-हानि और असंख्यातगुणवृद्धि-हानि; इतनी वृद्धियां व हानियां होती हैं ॥ २०१॥
तिण्णिवड्ढि तिण्णीहाणीओ केवचिरं कालादो होंति ? जहण्णेण एगसमयं ॥२०२॥
तीन वृद्धियां और तीन हानियां कितने काल होती हैं ? जघन्यसे वे एक समय होती हैं ॥ २०२ ॥
उक्कस्सेण आवलियाए असंखेज्जदिभागो ॥ २०३ ॥ " उत्कर्षसे उक्त तीन हानि-वृद्धियोंका काल आवलीके असंख्यातवें भाग प्रमाण है ।। असंखेज्जगुणवड्ढि-हाणी केवचिरं कालादो होंति ? जहण्णेण एगसमओ ॥२०४॥ असंख्यातगुणवृद्धि और हानि कितने काल होती हैं ? जघन्यसे वे एक समय होती हैं । उक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं ॥ २०५ ॥ उक्त वृद्धि और हानि उत्कर्षसे अन्तर्मुहूर्त काल तक होती है ॥ २०५॥ अप्पाबहुए ति सव्वत्थोवाणि अट्ठसमइयाणि जोगट्ठाणाणि ।। २०६ ॥ अल्पबहुत्वके अनुसार आठ समय योग्य योगस्थान सबसे स्तोक हैं ॥ २०६ ॥
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