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४, २, ४, १३९] छक्खंडागमे वेयणाखंड
[५५९ वेदणीयवेयणा दव्वदो जहणिया विसेसाहिया ॥१३९ ॥ द्रव्यसे जघन्य वेदनीयकी वेदना उससे विशेष अधिक है ॥ १३९ ॥ णामा-गोदवेदणाओ दव्वदो उक्कस्सियाओ दो वि तुल्लाओ असंखेज्जगुणाओ।
द्रव्यसे उत्कृष्ट नाम व गोत्रकी वेदनायें दोनों ही तुल्य होकर उससे असंख्यातगुणी हैं ॥ १४० ॥
___णाणावरणीय-दसणावरणीय-अंतराइयवेयणाओ दव्वदो उक्कस्सियाओ तिण्णि वि तुल्लाओ विसेसाहियाओ ॥ १४१॥
द्रव्यसे उत्कृष्ट ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय और अन्तरायकी वेदनायें तीनों ही तुल्य व उनसे विशेष अधिक हैं ॥ १४१ ॥
मोहणीयवेयणा दव्वदो उक्कस्सिया विसेसाहिया ॥१४२ ॥ द्रव्यसे उत्कृष्ट मोहनीयकी वेदना उनसे विशेष अधिक है ॥ १४२ ॥ वेयणीयवेयणा दव्वदो उक्कस्सिया विसेसाहिया ॥१४३ ॥ द्रव्यसे उत्कृष्ट वेदनीयकी वेदना उससे विशेष अधिक है ॥ १४३ ॥
[दव्व विहाण चूलिया] एत्तो भणिदं 'बहुसो बहुसो उक्कस्साणि जोगट्ठाणाणि गच्छदि जहण्णाणि च' एत्थ अप्पाबहुगं दुविहं जोगप्पाबहुगं चेव पदेसअप्पाबहुगं चेव ॥ १४४ ॥
पूर्वमें जो यह कहा गया है कि बहुत बहुत बार उत्कृष्ट योगस्थानोंको प्राप्त होता है और बहुत बहुत बार जघन्य योगस्थानोंको भी प्राप्त होता है, यहां अल्पबहुत्व दो प्रकारका हैयोगअल्पबहुत्व और प्रदेश-अल्पबहुत्व ॥ १४४ ॥
सूत्रसूचित अर्थके प्रकाशित करनेका नाम चूलिका है । प्रकृत द्रव्यविधान अनुयोगद्वारमें उत्कृष्ट स्वामित्वकी प्ररूपणा करते हुए 'बहुत बहुत बार उत्कृष्ट योगस्थानोंको प्राप्त होता है' यह कहा गया है तथा जघन्य स्वामित्वकी प्ररूपणामें 'बहुत बहुत बार जघन्य योगस्थानोंको प्राप्त होता है' यह कहा गया है, किन्तु वहां उसका स्पष्टीकरण नहीं किया है। अतएव उसका स्पष्टीकरण करनेके लिये यह चूलिका अधिकार प्राप्त हुआ है ।
प्रदेशबन्धका कारण योग है। तदनुसार योग-अल्पबहुत्व कारण और प्रदेश-अल्पबहुत्व कर्म है। उनमें पहिले कारणस्वरूप योग-अल्पबहुत्वकी प्ररूपणा जीवसमासोंके आश्रयसे की जाती है
सव्वत्थोवो सुहुमेइंदिय-अपज्जत्तयस्स जहण्णओजोगो ॥ १४५ ॥ सूक्ष्म एकेन्द्रिय अपर्याप्तका जघन्य योग सबसे स्तोक है ॥ १४५ ।।
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