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४, २, ४, १२० ]
छक्खंडागमे वेयणाखंड
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तत्थ य भवट्ठिदिं तेतीसं सागरोवमाणि आउअमणुपालयेतो बहुसो बहुसो असादद्धाए जुत्तो ॥ १२० ॥
वहां भवस्थिति तक तेत्तीस सागरोपम प्रमाण आयुका पालन करता हुआ बहुत बार असाताकाल (असातावेदनीयके बन्धयोग्य काल ) से युक्त हुआ ॥ १२० ॥
थोवावसेसे जीविदव्ar त्ति से काले परभवियमाउअं बंधिहिदि ति तस्स आउववेदणा दव्वदो जहण्णा ॥ १२१ ॥
जीवित स्तोक शेष रह जानेपर जो अनन्तर समयमें परभविक आयुको बांधेगा, उसके आयुकर्मकी वेदना द्रव्यकी अपेक्षा जघन्य होती है ॥ १२१ ॥
तव्वदिरित्तमजहण्णा ।। १२२ ।।
इस जघन्य द्रव्यवेदना भिन्न उसकी अजघन्यद्रव्यवेदना जानना चाहिये ॥ १२२ ॥ दीपशिखारूप जघन्य द्रव्यके ऊपर जो उत्तरोत्तर परमाणुके क्रमसे वृद्धि हुआ करती है यह सब जघन्य द्रव्यसे भिन्न अजघन्य द्रव्य के अन्तर्गत समझना चाहिये ।
auraहुए ति तत्थ इमाणि तिण्णि अणियोगद्दाराणि जहण्णपदे उक्कस्सपदे जणु कस्सपदे ॥ १२३ ॥
अब यहां अल्पबहुत्व अधिकारका प्रकरण है- उसमें जघन्य पद, उत्कृष्ट पद और जघन्योत्कृष्ट पद; इस प्रकार ये तीन अनुयोगद्वार हैं ॥ १२३ ॥
इनमें आठ कर्मोंके जघन्य द्रव्य विषयक अल्पबहुत्वका नाम जघन्यपद - अल्पबहुत्व हैं । उनके उत्कृष्ट द्रव्य विषयक अल्पबहुत्वको उत्कृष्टपद - अल्पबहुत्व कहते हैं । जघन्य व उत्कृष्ट द्रव्यको विषय करनेवाला अल्पबहुत्व जघन्योत्कृष्टपद - अल्पबहुत्व कहलाता है ।
जहणपदेण सव्वत्थोवा आयुगवेयणा दव्वदो जहणिया ॥ १२४ ॥
जघन्यपद अल्पबहुत्वकी अपेक्षा द्रव्यसे आयुकर्मकी जघन्य वेदना सबसे स्तोक है ॥
मा- गोदवेदाओ दव्वदो जहणियाओ दो वि तुलाओ असंखेज्जगुणाओ || द्रव्यसे जघन्य नाम व गोत्रकी वेदनायें दोनों ही आपसमें तुल्य होकर उससे असंख्यातगुणी हैं ॥ १२५ ॥
णाणावरणीय सणावरणीय अंतराइयवेदणाओ दव्वदो जहण्णियाओ तिणि वि तुलाओ विसेसाहियाओ ।। १२६ ।।
द्रव्यकी अपेक्षा जघन्य ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय और अन्तरायकी वेदनायें तीनों ही आपस में तुल्य होकर नाम व गोत्रकी वेदनासे विशेष अधिक है ॥ १२६॥
मोहणीयणा दव्वदो जहण्णिया विसेसाहिया || १२७ ॥
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