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४, २, ४, ८२]
छक्खंडागमे बेयणाखंडं .. दीहाओ अपज्जत्तद्धाओ, रहस्साओ पज्जतद्धाओ ॥ ८२ ॥
उक्त अपर्याप्त और पर्याप्त भवोंमें जिसका अपर्याप्तकाल बहुत और पर्याप्तकाल अल्प रहा है ।। ८२ ॥
जदा जदा आउअं बंधदि तदा तदा तप्पाओग्गउक्कस्सएण जोगेण बंधदि ॥ जब जब वह आयुको बांधता है तब तब तत्प्रायोग्य उत्कृष्ट योगसे बांधता है ॥ ८३ ॥ उवरिल्लीणं ठिदीणं णिसेयस्स जहण्णपदे हेडिल्लीणं द्विदीणं णिसेयस्स उक्कस्सपदे॥
जो उपरिम स्थितियोंके निषेकका जघन्य पद और अधस्तन स्थितियोंके निषेकका उत्कृष्ट पद करता है ॥ ८४ ॥
बहुसो बहुसो जहण्णाणि जोगट्ठाणाणि गच्छदि ॥ ८५॥ बहुत बहुत बार वह जघन्य योगस्थानोंको प्राप्त होता है ।। ८५ ॥ बहुसो बहुसो मंदसकिलेसपरिणामो भवदि ॥ ८६ ॥ बहुत बहुत बार मन्द संक्लेश परिणामोंसे संयुक्त होता है ॥ ८६ ॥ एवं संसरिदूण बादरपुढविजीवपज्जत्तएसु उववण्णो ।। ८७ ॥ इस प्रकार संसरण करके जो बादर पृथिवीकायिक पर्याप्त जीवोंमें उत्पन्न हुआ है ।।८७॥ अंतोमुहुत्तेण सव्वलहुं सव्वाहि पज्जत्तीहि पज्जत्तयदो ॥ ८८ ॥ सर्वलघु अन्तर्मुहूर्त कालमें जो सब पर्याप्तियोंसे पर्याप्त हुआ है ।। ८८ ॥ अंतोमुहुत्तेण कालगदसमाणो पुवकोडाउएसु मणुस्सेसु-उववण्णो ॥ ८९ ॥ अन्तर्मुहूर्तमें जो मृत्युको प्राप्त होकर पूर्वकोटि आयुवाले मनुष्योमें उत्पन्न हुआ है ॥८९॥ सव्वलहुं जोणिणिक्खमणजम्मणेण जादो अट्ठवस्सीओ ॥ ९० ॥ वहांपर जो सर्वलघु कालमें योनिनिष्क्रमण रूप जन्मसे उत्पन्न होकर आठ वर्षका हुआ है। संजमं पडिवण्णो ॥ ९१ ॥ तदनन्तर समयमें जो संयमको प्राप्त हुआ है ॥ ९१ ॥
तत्थ य भवद्विदिं पुव्वकोडिं देसूर्ण संजममणुपालइत्ता थोवावसेसे जीविदव्वए त्ति मिच्छत्तं गदो ॥ ९२ ॥
वहां जो कुछ कम पूर्वकोटि मात्र भवस्थिति तक संयमका पालन करके जीवितके थोड़ा शेष रह जानेपर मिथ्यात्वको प्राप्त हो गया है ॥ ९२ ॥
सव्वत्थोवाए मिच्छत्तस्स असंजमद्धाए अच्छिदो ॥ ९३ ॥ ___ इस प्रकार मिथ्यात्वको प्राप्त होकर जो उस मिथ्यात्वसम्बन्धी असंयमकालमें थोड़ा ही रहा है ॥ ९३ ॥ छ. ७०
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