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४, २, २, २]
छक्खंडागमे वेयणाखंड गम चवहार-संगहा सव्वाओ ॥ २ ॥ नैगम, व्यवहार और संग्रह ये तीन नय उपर्युक्त सभी वेदनाओंको स्वीकार करते हैं ॥२॥ उजुसुदो द्ववणं णेच्छदि ॥३॥ ऋजुसूत्र नय स्थापनानिक्षेपको स्वीकार नहीं करता है ॥ ३ ॥
कारण इसका यह है कि ऋजुसूत्र नयकी अपेक्षा पुरुषके संकल्पके अनुसार एक पदार्थका अन्य पदार्थ रूपसे परिणमन नहीं पाया जाता है ।
सद्दणओ णामवेयणं भाववेयणं च इच्छदि ॥ ४ ॥ शब्दनय नामवेदना और भाववेदनाको स्वीकार करता है ॥ ४ ॥
उपर्युक्त वेदनाओंमेंसे यहां द्रव्यार्थिक नयकी अपेक्षा बन्ध, सत्त्व एवं उदयस्वरूप नो-आगमकर्मद्रव्य वेदना; ऋजुसूत्र नयकी अपेक्षा उदयगत कर्मद्रव्यवेदना; तथा शब्दनयकी अपेक्षा कर्मके बन्ध और उदयसे उत्पन्न भाववेदना प्रकृत है।
॥ वेदना-नयविभाषणता समाप्त हुई ॥२॥
३. वेयणणामविहाणं
वेयणाणामविहाणे त्ति । णेगम-ववहाराणं णाणावरणीयवेयणा दसणावरणीयवेयणा वेयणीयवेयणा मोहणीयवेयणा आउववेयणा णामवेयणा गोदवेयणा अंतराइयवेयणा ॥१॥
अब वेदनानामविधान अधिकार प्राप्त है। नैगम व व्यवहार नयकी अपेक्षा ज्ञानावरणीयवेदना, दर्शनावरणीयवेदना, वेदनीयवेदना, मोहनीयवेदना, आयुवेदना, नामवेदना, गोत्रवेदना और अन्तरायवेदना; इस प्रकार वेदना आठ भेदरूप है ॥ १ ॥
इस वेदनानामविधान अधिकारमें प्रकृत वेदनाके भेदों और उनके नामोंकी प्ररूपणा की गई है । तदनुसार यहां द्रव्यार्थिक (नैगम व व्यवहार) नयकी अपेक्षा नोआगमकर्मवेदना यहां प्रकृत है । प्रकृत सूत्रके द्वारा यहां उसके आठ भेदों और उनके नामोंकी प्ररूपणा की गई है । नामप्ररूपणामें इन ज्ञानावरणीयवेदना आदि पदोंको सार्थक समझना चाहिये । जैसे- जो ज्ञानका आवरण करता है वह ज्ञानावरणीय कर्मद्रव्य कहलाता है । इस ज्ञानावरणीयस्वरूप जो वेदना है उसे ज्ञानावरणीयवेदना समझना चाहिये ।
संगहस्स अट्ठण्णं पि कम्माणं वेयणा ॥ २ ॥ संग्रहनयकी अपेक्षा आठों ही कर्मोकी एक वेदना होती है ॥ २॥
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