________________
४, २-१, ३] छक्खंडागमे वेयणाखंड
[ ५३५ द्वारमें उक्त वेदनाद्रव्यके क्षेत्र, काल और भावोंके कारणोंका विवेचन किया गया है। ९. एक आदिके संयोगसे आठ भंगरूप जो जीव और नोजीव आदि हैं- वे वेदनाके स्वामी होते हैं व नहीं होते हैं, इसकी प्ररूपणा नयोंके आश्रयसे वेदनास्वामित्व अनुयोगद्वारमें की गई है । १०. एक दो आदिके संयोगसे भेदको प्राप्त हुई बध्यमान, उदीर्ण और उपशान्त प्रकृतियोंके भेदसे जो वेदनाके अनेक विकल्प होते हैं- उनकी प्ररूपणा नयोंके आश्रयसे वेदना वेदनाविधान अनुयोगद्वारमें की गई है। ११. द्रव्यादिके भेदसे भेदको प्राप्त हुई वेदना क्या स्थित है, क्या अस्थित है, और क्या स्थित-अस्थित है; इसका विचार नयोंके आश्रयसे वेदनागतिविधान अनुयोगद्वारमें किया गया है । १२. वेदना-अनन्तरविधान अनुयोगद्वारमें नयविवक्षाके अनुसार एक एक समयनबद्धरूप अनन्तर बन्ध, नाना समयप्रबद्धरूप परम्पसबन्ध तथा उभयबन्धरूप कर्मपुद्गलस्कन्धोंकी प्ररूपणा नयविवक्षाके अनुसार की गई है । १३. द्रव्य, क्षेत्र, काल और भावरूप वेदनाके उत्कृष्ट, अनुत्कृष्ट, जघन्य एवं अजघन्यमेंसे किसी एकको मुख्य करके शेष पद क्या उत्कृष्ट होते हैं या अनुत्कृष्ट आदि होते हैं; इसकी परीक्षा वेदनासंनिकर्षविधान अनुयोगद्वारमें की गई है। १४. वेदनापरिमाणविधान अनुयोगद्वारमें प्रकृतियोंके काल और क्षेत्रके भेदसे मूल व उत्तर प्रकृतियोंके प्रमाणकी प्ररूपणा की गई है । १५. प्रकृत्यर्थता, स्थित्यर्थता और क्षेत्रप्रत्यासमें उत्पन्न प्रकृतियां सब प्रकृतियोंके कितनेवें भाग प्रमाण हैं; इसका विचार वेदनाभागाभागविधान अनुयोगद्वारमें किया गया है । १६. तथा वेदना-अल्पबहुत्व अनुयोगद्वारमें इन्हीं तीन प्रकारकी प्रकृतियोंके एक दूसरोंकी अपेक्षा अल्पबहुत्वकी प्ररूपणा की गई है ।
इस प्रकार इस वेदना महाधिकारमें इन सोलह अनुयोगद्वारोंकी प्ररूपणा की गई हैवेयणण्णिक्खवे त्ति चउबिहे वेयणण्णिक्खेवे ॥२॥ अब क्रमसे वेदनानिक्षेप अधिकार प्रकरण प्राप्त है। वह वेदनाका निक्षेप चार प्रकारका है। णामवेयणा ढवणवेयणा दव्ववेयणा भाववेयणा चेदि ॥ ३ ॥ नामवेदना, स्थापनावेदना, द्रव्यवेदना और भाववेदना ॥ ३ ॥
उनमेंसे एक जीव व अनेक जीव आदि आठ प्रकारके. बाह्य अर्थका अवलम्बन न करनेवाला 'वेदना' शब्द नामवेदना है।
'वह वेदना यह है' इस प्रकार अभेदरूपसे अन्य पदार्थमें वेदनारूपसे जिसका अध्यवसाय होता है उसका नाम स्थापनावेदना है । वह स्थापनावेदना सद्भावस्थापना और असद्भावस्थापनाके भेदसे दो प्रकारकी है । उनमेंसे जो द्रव्यका भेद प्रायः वेदनाके समान है उसमें इच्छित वदेनाद्रव्यकी स्थापना करना, इसे सद्भावस्थापनावेदना कहते हैं। जो द्रव्यका भेद वेदनाके समान नहीं है उसमें वेदनाद्रव्यकी कल्पना करनेको असद्भावस्थापनावेदना कहा जाता है।
द्रव्यवेदना दो प्रकारकी है- आगमद्रव्यवेदना और नोआगमद्रव्यवेदना । जो जीव
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org