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४, १, ७५]
कदिअणियोगद्दारे उत्तरकरणकदिपरूवणा
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जे चामण्णे एवमादिया सा सव्वा उत्तरकरणकदी णाम ॥ ७२ ॥ इसी प्रकार और भी जो अन्यकरण हैं वे सब उत्तरकरणकृति कहलाती हैं ॥ ७२ ॥
कारण यह कि इसके इतने ही कारण है, इस प्रकार करणोंकी नियत संख्या सम्भव नहीं है।
जा सा भावकरणकदी [भावकदी णाम सा उवजुत्तो पाहुडजाणगो ॥ ७३ ॥ कृतिप्रामृतका जानकार जो उपयोग युक्त जीव है वह सब भाव करणकृति (भावकृति) है । सा सव्वा भावकदी णाम ॥ ७४ ॥ वह सब भावकृति है ॥ ७४ ॥ एदासिं कदीणं काए कदीए पयदं ? गणणकदीए पयदं ॥७५ ॥ इन कृतियोंमें कौन-सी कृति प्रकृत है ? गणनकृति प्रकृत है ॥ ७५ ॥
॥ इस प्रकार कृतिअनुयोगद्वार समाप्त हुआ ॥ १ ॥
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