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४, १, ६६ ] कदिअणियोगद्दारे गणणकदिपवणा
[ ५२९ उनमें गूंथनेरूप क्रियासे सिद्ध हुए पुष्पमाला आदि द्रव्यको प्रन्थिम कहते हैं। बुनना क्रियासे सिद्ध हुए सूप, टिपारी, चंगेर (एक प्रकारकी बड़ी टोकरी) चालनी, कम्बल और वस्त्रादि द्रव्य बाइम कहलाते हैं । वेदन क्रियासे सिद्ध हुए सूति (सोम निकालनेका स्थान ), इंधुव (भट्टी), कोश और पल्य आदि द्रव्य वेदिम कहे जाते हैं। पूरण क्रियासे सिद्ध हुए तालाबका बांध व जिनगृहका चबूतरा आदि द्रव्योंका नाम पूरिम है। लकड़ी, ईट और पत्थर आदिकी संघातन क्रियासे सिद्ध हुए कृत्रिम जिनभवन, गृह, प्राकार और स्तूप आदि द्रव्य संघातिम कहलाते हैं। आहोदिम क्रियासे सिद्ध हुए नीम, आम, जामुन और जंबीर आदि द्रव्योंको आहोदिम कहते हैं। आहोदिम क्रियासे यहां सचित्त और अचित्त द्रव्योंकी रोपज क्रियाको ग्रहण करना चाहिये । खोदने रूप पुष्करिणी, वापी, कूप, सिद्ध हुए तडाग, लयन और सुरंग आदि द्रव्य णिक्खोदिम कहलाते हैं । ओवेल्लन क्रियासे सिद्ध हुए एकगुणे, दुगुणे एवं तिगुणे डोरा आदि द्रव्य ओवेल्लिम कहे जाते हैं । ग्रन्थिम व वाइम आदि द्रव्योंके उद्वेलनसे उत्पन्न द्रव्य उद्वेलिम कहे जाते हैं। चित्रकार एवं वर्गों के उत्पादनमें निपुण दूसरोंकी भी क्रियासे सिद्ध मनुष्य व घोड़ा आदि अनेक आकाररूप द्रव्य वर्ण कहे जाते हैं । चूर्णन क्रियासे सिद्ध हुए पिष्ट, पिष्टिका और कणिका आदि द्रव्योंको चूर्ण कहते हैं । बहुत द्रव्योंके संयोगसे उत्पादित गन्धप्रधान द्रव्यका नाम गन्ध है। घिसे व पीसे गये चन्दन और कुंकुम आदि द्रव्य विलेपन कहे जाते हैं । ‘इनको आदि लेकर जो और द्रव्य हैं ' इस सूत्र वचनसे जोड़कर व काटकर बनाये गये द्विसंयोगादि द्रव्योंके अस्तित्वकी प्ररूपणा की गई है।
जा सा गणणकदी णाम सा अणेयविहा । तं जहा-एओ णोकदी, दुवे अवत्तव्वा कदि त्ति-वा णोकदि त्ति वा, तिप्पहुडि जाव संखेज्जा वा असंखेज्जा वा अणंता वा कदी, सा सव्वा गणणकदी णाम ॥ ६६ ॥
जो वह गणनकृति है वह अनेक प्रकार है। वह इस प्रकारसे- एक संख्या नोकृति है, दो संख्या कृति और नोकृति रूपसे अवक्तव्य है, तीनको आदि लेकर संख्यात, असंख्यात व अनन्त संख्यायें कृति कहलाती हैं । वह सब गणनकृति कही जाती है ॥ ६६ ॥
__ 'एक' यह नोकृति है। इसका कारण यह है कि जो राशि वर्गित होकर वृद्धिको प्राप्त होती है तथा जो अपने वर्गमेंसे अपने ही वर्गमूलको कम करके वर्ग करनेपर वृद्धिको प्राप्त होती है उसे कृति कहते हैं । 'एक' संख्याका वर्ग करनेपर चूंकि वह वृद्धि नहीं होती तथा उसमेंसे वर्गमूलके कम कर देनेपर वह निर्मूलही नष्ट हो जाती है इसी लिये 'एक' संख्या नोकृति है, ऐसा सूत्रमें कहा है । यह 'एक' संख्या गणनाका प्रकार मात्र है ।
दो अंकोंका वर्ग करनेपर चूंकि वृद्धि देखी जाती है, अतः 'दो' को नोकृति नहीं कहा जा सकता है । और चूंकि उसके वर्गमेंसे मूलको कम करके वर्गित करनेपर वह वृद्धिको प्राप्त नहीं होती, किन्तु पूर्वोक्त राशि ही रहती है; अत: 'दो' को कृति भी नहीं कहा जा सकता है। यह विचार करके 'दो' संख्याको अवक्तव्य कहा गया है । यह द्वितीय गणनाकी जाति है। छ.६७
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