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छक्खंडागमे वेयणाखंड
[ ४, १, ६३
देवके द्वारा जिस शब्दकलापका अर्थ कहा गया है तथा जो गणधरोंसे ग्रन्थित किया गया है ऐसे शब्दकलापका नाम ग्रन्थ है। उससे उत्पन्न होकर भद्रबाहु आदि स्थविरों में रहनेवाला कृतिअनुयोग ग्रन्थके साथ रहने से ग्रन्थ सम कहलाता है । बुद्धिविहीन पुरुषोंके भेदसे एक दो अक्षर आदिकोंसे हीन कृतिअनुयोग 'नाना मिनोति' अर्थात् जो नाना अर्थोंको ग्रहण करता है वह नाम है, इस निरुक्तिके अनुसार 'नाम' कहा जाता है । उसके साथ रहनेवाले भावकृतिअनुयोगको नामसम कहते हैं । उस कृतिअनुयोगद्वारका एक अनुयोग घोष कहलाता है। उससे उत्पन्न कृति अनुयोगको और उससे न उत्पन्न होकर भी जो उसके समान है ऐसे कृतिअनुयोगको भी घोषसम कहते हैं । इस प्रकार कृतिअनुयोग नौ प्रकारका होनेसे उसके ज्ञायक भी नौ होते है ।
तस्स कदिपाहुडजाणयस्स चुद- चइद- चत्तदेहस्स इमं सरीरमिदि सा सव्वा जाणुगसरीरदव्वकदी णाम ।। ६३ ।।
च्युत, च्यावित और त्यक्त शरीरवाले उस कृतिप्राभृतज्ञायकका यह शरीर है, ऐसा जानकर वह सब ज्ञायकशरीरद्रव्यकृति कहलाती है ॥ ६३ ॥
आयुके क्षयसे जिसका शरीर स्वयं विनष्ट हुआ है ऐसा कृतिप्राभृतका ज्ञायक जीव च्युतदेह कहलाता है । जिसका शरीर उपसर्गके द्वारा नष्ट हुआ है ऐसा कृतिप्राभृतका जानकार साधु व्यावितदेह कहा जाता है । भक्तप्रत्याख्यान, इंगिनी और प्रायोपगमन की विधिसे शरीरको छोड़नेवाला कृतिप्राभृतका जानकार साधु त्यक्तदेह कहलाता है । इन च्युत, च्याक्ति और व्यक्त देवाले कृतिप्राभृतके ज्ञायकोंका यह शरीर है, ऐसा मानकर वे सब शरीर ज्ञायकशरीर द्रव्यकृति कहलाते हैं ।
जा सा भवियदव्वकदी णाम जे इमे कदि ति अणियोगद्दारा भविओवकरणदाए जो ट्ठिदो जीवो ण य पुण ताव तं करेदि सा सव्वा भविओदव्वकदी णाम ॥ ६४ ॥
जो वह भावी द्रव्यकृति है उसका स्वरूप इस प्रकार है- जो ये कृतिअनुयोगद्वार हैं भविष्य में उनके उपादान कारण स्वरूपसे जो स्थित होकर भी वर्तमान में उसे नहीं कर रहा है वह सब भावी द्रव्यकृति है ॥ ६४ ॥
जसा जाणुगसरीर भवियवदिरित्तदव्वकदी णाम सा अणेयविहा । तं जहा - गंथिमवाइम - वेदिम-पूरिम-संघादिम- आहोदिमणिक्खोदिम - ओवेल्लिम - उब्व्वेल्लिम-वण्ण-चुण्ण-गंधविलेवणादीणि जे चामण्णे एवमदिया सा सव्वा जाणुगसरीर भवियवदिरित्तदव्यकदी णाम || जो वह ज्ञायकशरीर और भावीसे भिन्न द्रव्यकृति है वह अनेक प्रकारकी है । वह इस प्रकारसे - ग्रन्थिम, वाइम, वेदिम, पूरिम, संघातिम, आहोदिम, णिक्खोदिम, ओवेल्लिम, उद्वेल्लिम, वर्ण, चूर्ण, गन्ध और विलेपन आदि तथा और जो अन्य इसी प्रकार हैं वह सब ज्ञायक शरीर - भाविव्यतिरिक्त द्रव्यकृति कही जाती है ॥ ६५ ॥
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