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छक्खंडागमे वेयणाखंड
[ ४, १, ३३
शरीरका बाह्य मल ( पसीना आदि) जल्ल कहलाता है । वह जिनके तपके प्रभावसे औषधिको प्राप्त हो गया है वे जल्लोषधिप्राप्तजिन कहे जाते हैं । उनको नमस्कार हो । मो विडोसहिपत्ताणं ॥ ३३ ॥
विष्टौषधिप्राप्त जिनको नमस्कार हो ॥ ३३ ॥
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विष्टा शब्द मलमूत्रादिका वाचक है। जिनके वे मलमूत्रादि औषधित्वको प्राप्त हो गये हैं वे विष्टौषधिप्राप्त जिन हैं । उनको नमस्कार हो ।
मोसव्वसहिपत्ताणं ॥ ३४ ॥
सर्वौषधिप्राप्त जिनोंको नमस्कार हो ॥ ३४ ॥
जिनके रस, रुधिर, मांस, मेदा, अस्थि, मज्जा, शुक्र, फुप्फुस एवं मल-मूत्रादि ये सब औषधिपनेको प्राप्त हो गये हैं वे सर्वौषधिप्राप्त जिन हैं। उनको नमस्कार हो ।
णमो मणवली || ३५ ॥
मनबल ऋद्धि युक्त जिनोंको नमस्कार हो || ३५ ॥
बारह अंगो में निर्दिष्ट त्रिकाल विषयक अनन्त अर्थ व व्यञ्जन पर्यायोसें परिपूर्ण छह द्रव्योंका निरन्तर चिन्तन करते हुए भी खेदको प्राप्त न होना, इसका नाम मनबल है । यह मनबल जिनके पाया जाता है वे मनबली कहलाते हैं । उन मनबली ऋषियोंको नमस्कार हो ।
णमो वचिवणं ॥ ३६ ॥
aarat ऋषियोंको नमस्कार हो ॥ ३६ ॥
बारह अंगों की बहुत बार आवृत्ति करके भी जो खेदको नहीं प्राप्त होते हैं वे वचनबली कहलाते हैं । उनको नमस्कार हो ।
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णमो कायबलीणं ॥ ३७ ॥
कायबली ऋषियोंको नमस्कार हो ॥ ३७ ॥
जो तीनों लोकोंको हाथकी अंगुलिसे उठाकर उन्हें अन्यत्र रखने में समर्थ होते हैं कायबली कहलाते हैं । इन कायबल ऋद्धिधारक जिनोंको नमस्कार हो ।
णमो खीरसवीणं ॥ ३८ ॥
क्षीरस्रवी जिनोंको नमस्कार हो ॥ ३८ ॥
क्षीरका अर्थ दूध होता है । जिस ऋद्धिके प्रभावसे हाथमें रखा गयां रुक्ष भोजन तत्काल दूधस्वरूप परिणत हो जाता है वह क्षीरस्रवी ऋद्धि कहलाती है, अथवा जिसके प्रभाव से वचन दूधके समान मधुर प्रतिभासित होते हैं वह भी क्षीरस्रवी ऋद्धि कही जाती है । उस क्षीरस्रवी ऋद्धिके धारक जिनोंको नमस्कार हो ।
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