________________
४, १, ५५ ]
कदिअणियोगद्दारे सुदणाणोवजोगा
[ ५२५
स्थित होकर प्रवृत्ति करनेसे- रुक रुक कर चलने से - स्थित कहलाता है । जिनका अर्थ नैः संग्यवृत्ति है । अभिप्राय यह कि जिस संस्कारसे पुरुष भावागममें अस्खलित स्वरूपसे संचार करता है उससे युक्त पुरुष और वह भावगम भी 'जित' कहा जाता है । जिस जिस विषय में प्रश्न किया जाता है उस उसमें अतिशय शीघ्रतापूर्वक प्रवृत्तिका नाम परिचित है । अभिप्राय यह कि क्रमसे, अक्रमसे और अनुभयस्वरूपसे भावागमरूपी समुद्रमें मछलीके समान अत्यन्त चंचलतापूर्ण प्रवृत्ति करनेवाला प्राणी और वह भावागम भी परिचित कहा जाता है ।
शिष्योंके पढ़ानेका नाम वाचना है । वह चार प्रकार है नन्दा, भद्रा, जया और सौम्या । इनमें अन्य दर्शनोंको पूर्वपक्ष रूपसे स्थापित करके उनका निराकरण करते हुए अपने पक्षको स्थापित करनेवाली व्याख्या नन्दा कहलाती है । युक्तियों द्वारा समाधान करके पूर्वापर विरोधका परिहार करते हुए सिद्धान्तमें स्थित समस्त पदार्थोंकी व्याख्याका नाम भद्रा है । पूर्वापरविरोध के परिहारके विना सिद्धान्तके अर्थोंका कथन करना, यह जया वाचना कहलाती है । कहीं कहीं स्खलनपूर्ण वृत्तिसे जो व्याख्या की जाती है वह सौम्या वाचना कही जाती है । इन चार प्रकारकी वाचनाओं को प्राप्त हुआ आगम वाचनोपगत कहलाता है । अभिप्राय यह है कि जो दूसरोंको ज्ञान करानेके लिये समर्थ होता है उसे वाचनोपगत जानना चाहिये । इस आगमार्थका व्याख्यान करनेवालोंको और सुननेवालोंको भी द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव इन चारोंका शुद्धिपूर्वकही करनेमें और सुननेमें प्रवृत्त होना चाहिये ।
तीर्थंकर जिनेन्द्रके मुख से निकले हुए बीजपदको सूत्र कहते हैं । उस सूत्रके साथ उत्पन्न होकर जो श्रुतज्ञान गणधर देवमें अवस्थित होता है उसका नाम सूत्रसम है । बारह अंगोंका विषय अर्थ कहलाता है, उस अर्थके साथ जो आगम रहता है उसे अर्थसम कहते हैं । अभिप्राय इसका यह है कि द्रव्यसूत्रके धारक आचार्योंकी अपेक्षा न करके संयमके निमित्तसे उत्पन्न हुए श्रुतज्ञानावरणके क्षयोपशमसे जो द्वादशांग श्रुत स्वयंबुद्धोंको प्राप्त होता है उसे अर्थसम समझना चाहिये । गणधर देवके द्वारा रचा गया द्रव्यश्रुत ग्रन्थ कहलाता है, उसके साथ जो द्वादशांगश्रुत बोधतबुद्ध आचार्यों में अवस्थित रहता है उसका नाम ग्रन्थसम है । 'नाना मिनोति' इस निरूक्तिके अनुसार जो अनेक प्रकारसे अर्थका परिच्छेद न करता जो जानता है उसे नाम कहते हैं । अभिप्राय यह एक आदि अक्षरको लेकर बारह अंगोंसम्बन्धी अनुयोगोंके मध्य में स्थित द्रव्यश्रुतज्ञानके समस्त भेदोंको नाम समझना चाहिये । उस नामके साथ जो शेष आचार्यों में श्रुतज्ञान उत्पन्न घोषका अर्थ अनुयोग है, उस अनुयोगके साथ जो
व स्थित होता है वह नामसम कहलाता है । उत्पन्न होता है वह घोषसम कहलाता है ।
अब इन आगमों विषयक उपयोगोंकी प्ररूपणा करनेके लिये आगेका सूत्र कहते हैंजा तत्थ वायणा वा पुच्छणा वा पडिच्छणा वा परियट्टणा वा अणुपेक्खणा वा - धम्मका वा जे चामण्णे एवमादिया ॥ ५५ ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org