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५२४ ] छक्खंडागमे वेयणाखंडं
[ ४, १, ५३ प्रतिमाओंको काष्ठकर्म कहते हैं । वस्त्र, भित्ति एवं पटिये आदिपर नाचने आदिकी क्रियाओंमें प्रवृत्त हुए देव, नारकी, तिर्यंच और मनुष्योंका जो चित्र खींचा जाता है उसे चित्रकर्म कहते हैं। पोत्तका अर्थ वस्त्र होता है । उससे की गई प्रतिमाओंका नाम पोत्तकर्म है। कट (तृण), शर्करा (शक्कर) व मृत्तिका आदिके लेपका नाम लेप्य है । उससे निर्मित प्रतिमाओंका नाम लेप्यकर्म है। लयनका अर्थ पर्वत होता है। उसमें निर्मित प्रतिमाओंका नाम लयनकर्म है। शैलका अर्थ पत्थर होता है । उसमें निर्मित प्रतिमाओंका नाम शैलकर्म है । गृहोंसे अभिप्राय यहां जिनगृहादिकोंका है। उनमें की गई प्रतिमाओंका नाम गृहकर्म है । अभिप्राय यह कि घोड़ा, हाथी, मनुष्य एवं वराह (शूकर) आदिके स्वरूपसे निर्मित घर गृहकर्म कहलाते है । घरकी दीवालोंमें उनसे अभिन्न रची गई प्रतिमाओंका नाम भित्तिकर्म है। हाथीके दांतोंपर खोदी हुई प्रतिमाओंका नाम दन्तकर्म है । भेंडसे निर्मित प्रतिमाओंका नाम भेंडकर्म है । ये दस सद्भावस्थापनाके उदाहरण हैं ।
' असद्भावस्थापनाकृतिके उदाहरण अक्ष और वराटक आदि जानने चाहिये । ‘अक्ष' शब्दसे द्यूत (जुआ) के पाँसों और गाडीके धुराका तथा वराटक शब्दसे कौडियोंका ग्रहण होता है । उपलक्षणरूपसे यहां स्तम्भकर्म, तुलाकर्म, हलकर्म और मुसलकर्म आदिको ग्रहण करना चाहिये । जिसमें स्थापित किया जाता है वह स्थापना है। 'अमा' अर्थात् अभेदरूपसे स्थापना अर्थात् सद्भाव व असद्भावरूप स्थापनामें 'यह कृति है' इस प्रकार जो स्थापित किये जाते हैं वह सब स्थापनाकृति कही जाती है।
जा सा दबकदी णाम सा दुविहा आगमदो दव्वकदी चेव णोआगमदो दव्वकदी चेव ॥ ५३॥
जो वह द्रव्यकृति है वह आगमद्रव्यकृति और नोआगमद्रव्यकृतिके भेदसे दो प्रकारकी है ॥
आगम, सिद्धान्त व श्रुतज्ञान; इन शब्दोंका एकही अर्थ है । जो आप्तवचन पूर्वापरविरोध आदि दोषोंके समूहसे रहित होकर सब पदार्थोंका प्रकाशक होता है वह आगम कहलाता है। इस आगमसे जो द्रव्यकी कृति है वह आगमद्रव्यकृति कहलाती है । इस आगमद्रव्यकृतिसे भिन्न नोआगमद्रव्यकृति जानना चाहिये । इस प्रकार द्रव्यकृतिके कृतिकी दो भेदोंकी प्ररूपणा करके अब आगे आगमभेदोंके प्ररूपणार्थ उत्तर सूत्र कहते हैं
जा सा आगमदो दव्वकदी णाम तिस्से इमे अट्ठाहियारा भवंति-द्विदं जिदं परिजिदं वायणोपगदं सुत्तसमं अत्थसमं गंथसमं णामसमं घोससमं ॥५४ ॥
जो वह आगमसे द्रव्यकृति है उसके ये अर्थाधिकार हैं- स्थित, जित, परिजित, वाचनोपगत, सूत्रसम, अर्थसम, ग्रन्थसम, नामसम और घोषसम ॥ ५४ ॥
__ ये आगमके नौ अधिकार हैं। इनमें जो पुरुष वृद्ध व व्याधिपीडितके समान भावआगममें धीरे धीरे संचार करता है वह उस प्रकारके संस्कारसे युक्त पुरुष और वह भावागम भी
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