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३, २८७] सम्मत्तमग्गणाए बंध-सामित्तं
[५०५ उरससंठाण-उब्धियअंगोवंग-चण्ण-गंध-रस-फास-देवगइपाओग्गाणुपुची - अगुरुलहुव-उवधादपरघाद-उस्सास-पसस्थविहायगइ-तस-बादर-पज्जत्त-पत्तेयसरीर-थिर-सुभ-सुभग-सुस्वर-आदेज्जजसकित्ती-णिमिण-तित्थयरुच्चागोद-पंचंतराइयाणं को बंधो को अबंधो ? ॥ २८१ ॥
वेदकसम्यग्दृष्टियोंमें पांच ज्ञानावरणीय, छह दर्शनावरणीय, सातावेदनीय, चार संज्वलन, पुरूषवेद, हास्य, रति, भय, जुगुप्सा, देवगति, पंचेन्द्रिय जाति, वैक्रियिक, तैजस व कार्मण शरीर, समचतुरस्रसंस्थान, वैक्रियिक शरीरांगोपांग, वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श, देवगतिप्रायोग्यानुपूर्वी, अगुरुलघु, उपघात, परघात, उच्छ्वास, प्रशस्तविहायोगति, त्रस, बादर, पर्याप्त, प्रत्येकशरीर, स्थिर, शुभ, सुभग, सुस्वर, आदेय, यशःकीर्ति, निर्माण, तीर्थंकर, उच्चगोत्र और पांच अन्तराय; इनका कौन बन्धक है और कौन अबन्धक है. ? ॥ २८१ ।।
असंजदसम्मादिद्विप्पहुडि जाव अप्पमत्तसंजदा बंधा । एदे बंधा, अबंधा णत्थि ॥ . असंयतसम्यग्दृष्टि से लेकर अप्रमत्तसंयत तक बन्धक हैं। ये बन्धक हैं। अबन्धक नहीं हैं ॥ २८२ ॥
असादावेदणीय - अरदि-सोग -अथिर - असुह - अजसकित्तिणामाणं को बंधो को अबंधो ? ॥२८३ ॥
असातावेदनीय, अरति, शोक, अस्थिर, अशुभ, और अयशःकीर्ति नामकर्मका कौन बन्धक है और कौन अबन्धक है ? ॥ २८३ ॥ __असंजदसम्मादिट्टिप्पडि जाव पमत्तसंजदा बंधा । एदे बंधा, अवसेसा अबंधा।
असंयतसम्यग्दृष्टि से लेकर प्रमत्तसंयत तक बन्धक हैं। ये बन्धक हैं, शेष अबन्धक हैं ॥ २८४ ॥
अपच्चाक्खाणावरणीयकोह-माण-माया-लोह-मणुस्साउ-मणुसगइ-ओरालियसरीरओरालियसरीरअंगोवंग चज्जरिसहसंघडण-मणुसाणुपुवीणामाणं को बंधो को अबंधो?॥
अप्रत्याख्यानावरणीय क्रोध, मान, माया व लोभ, मनुष्यायु, मनुष्यगति, औदारिकशरीर, औदारिकशरीरांगोपांग, वर्षभसंहनन और मनुष्यानुपूर्वी नामकर्मका कौन बन्धक है और कौन अबन्धक है ? ॥ २८५ ॥
असंजदसम्मादिट्ठी बंधा । एदे बंधा, अवसेसा अबंधा ।। २८६ ॥ असंयतसम्यग्दृष्टि बन्धक हैं । ये बन्धक हैं, शेष, अबन्धक हैं ॥ २८६ ॥ पच्चक्खाणावरणीयकोह-माण-माया-लोभाणं को बंधो को अबंधो? ॥ २८७ ॥
प्रत्याख्यानावरणीय क्रोध, मान, माया और लोभका कौन बन्धक है और कौन अबन्धक है ? ॥ २८७ ॥ छ. ६४
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