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५१२ ] छक्खंडागमे वेयणाखंड
[४, १, ५ जो अवधिज्ञान सबको विषय करनेवाला है वह सर्वावधि कहा जाता है। उस सर्वावधिके धारक जिनोंको नमस्कार हो ॥ ४ ॥
__ यहां सर्व' शब्दसे समस्त द्रव्योंको ग्रहण न करके उनके एक देशभूत रूपी (पुद्गल) द्रव्यकोही ग्रहण करना चाहिये । कारण यह कि अवधिज्ञानका विषयरूपी द्रव्य है, अरूपी द्रव्य उसका विषय नहीं है।
णमो अणंतोहिजिणाणं ॥५॥ अनन्तावधिजिनोंको नमस्कार हो ॥ ५ ॥
जिस ज्ञानका विषयकी अपेक्षा अन्त और अवधि नहीं है उस अनन्त व निरवधि ज्ञानस्वरूप जिनोंको इस सूत्रके द्वारा नमस्कार किया गया है।
णमो कोहबुद्धीणं ॥६॥ कोष्ठबुद्धिके धारक जिनोंको नमस्कार हो ॥ ६ ॥
कोष्ठ नाम कुठिया (मिट्टीस निर्मित एक धान्य रखनेका पात्र विशेष) का है। जिस प्रकार कोष्ठ गेहूं जौ आदि अनेक प्रकारके अनाजोंके धारण करने में समर्थ होता है उसी प्रकार जो बुद्धि समस्त द्रव्य-पर्यायोंके ग्रहणमें समर्थ होती है वह कोष्ठ बुद्धि कही जाती है । इस कोष्ठबुद्धिसे संयुक्त जिनोंको नमस्कार हो। यद्यपि सूत्र में 'जिन' पद नहीं है, फिर भी यहां तथा आगे भी पूर्वसूत्रोंसे उसकी अनुवृत्ति लेना चाहिये ।
णमो बीजबुद्धीणं ॥ ७॥ बीजबुद्धिके धारक जिनोंको नमस्कार हो ॥ ७ ॥
जिस प्रकार बीज मूल, अंकुर, पत्र, पारे और स्कन्ध आदिकोंका आधार होता है उसी प्रकार जो पद बारह अंगोके अर्थका आधारभूत होता है वह बीज तुल्य होनेसें बीज कहा जाता है । इस बीज पदको विषय करनेवाले मतिज्ञानकी भी कार्यमें कारणके उपचारसे 'बीज' संज्ञा है । तात्पर्य यह कि जो बुद्धि संख्यात पदोंके द्वारा अनन्त अर्थोंसे सम्बद्ध उस बीज पदको ग्रहण करती है उसे बीजबुद्धि समझना चाहिये । जिस प्रकार उत्तम रीतिसे जोती गई उपजाऊ भूमिमें योग्य काल आदिरूप सामग्रीकी सहायतासे बोया गया बीज प्रचुर धान्यको उत्पन्न करता है उसी प्रकार नोइन्द्रियावरण, श्रुतज्ञानावरण और वीर्यान्तरायके क्षयोपशमकी अधिकतासे प्राप्त हुई इस बीज बुद्धिके आश्रयसे जीव किसी एक ही बीजपदको ग्रहण करके उसके आश्रयसे अनेक पदार्थोके ग्रहणमें समर्थ होता है । ऐसी बीजबुद्धिके धारक जिनोंको नमस्कार है, यह सूत्रका अभिप्राय है ।
णमो पदाणुसारीणं ॥८॥ पदानुसारी ऋद्धिके धारक जिनोंको नमस्कार हो ॥ ८ ॥
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