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सिरि-भगवंत-पुप्फदंत-भूदबलि-पणीदो
छक्खंडागमो
तस्स
४. चउत्थे खंडे वेयणामहाधियारे कदिआणियोगद्दारं
कृति व वेदना आदि चौबीस अनुयोगद्वारों स्वरूप महाकर्मप्रकृतिप्राभृतके प्रारम्भमें श्री गौतम गणधरके द्वारा जो मंगल किया गया था उसे वहांसे लेकर भगवान् भूतबली भट्टारक यहां वेदना महाधिकारके प्रारम्भमें स्थापित करते हुए सर्व प्रथम जिनोंको नमस्कार करते हैं
णमो जिणाणं ॥१॥ जिनोंको नमस्कार हो ॥ १॥
जिन नाम, स्थापना, द्रव्य और भावके भेदसे चार प्रकारके हैं। उनमें 'जिन' यह शब्द नामजिन है। स्थापना जिन सद्भावस्थापना और असद्भावस्थापनाके भेदसे दो प्रकारके हैं। जिन भगवान्के आकाररुपसे स्थित-द्रव्य सद्भावस्थापनाजिन है। उस आकारसे रहित जिस द्रव्यमें जिन भगवान्की कल्पना की जाती है वह असद्भावस्थापनाजिन है।।
द्रव्यजिन आगम और नाआगमके भेदसे दो प्रकारके हैं। जो जीव जिनप्राभृतका ज्ञाता होकरभी वर्तमानमें तद्विषयक उपयोगसे रहित होता है वह आगमद्रव्यजिन कहलाता है । नोआगमद्रव्यजिन ज्ञायकशरीर, भावी और तद्व्यतिरिक्तके भेदसे तीन प्रकारके हैं। उनमें ज्ञायकशरीर नोआगमद्रव्यजिन भावी, वर्तमान और समुज्झितके भेदसे तीन प्रकारके हैं। भविष्य कालमें जिन पर्यायसे परिणत होनेवाला भावी द्रव्य जिन कहा जाता है। तद्व्यतिरिक्त द्रव्यजिन सचित्त, अचित्त और तदुभयके भेदसे तीन प्रकारके हैं । इनमें ऊंट, घोड़ा और हाथियों आदि के विजेता सचित्त द्रव्यजिन तथा हिरण्य, सुवर्ण, मणि और मोती आदिकोंके विजेता अचित्तद्रव्यजिन कहे जाते हैं । सुवर्ण आदिसे निर्मित आभूषणोंसहित कन्यादिकोंके विजेताओंको सचित्ताचित्त द्रव्यजिन जानना चाहिये।
___ आगम और नोआगमके भेदसे भावजिन दो प्रकारके है। उनमें जिनप्राभृतका जानकार होकर वर्तमानमें तद्विषयक उपयोगसे संयुक्त जीव आगमभाव जिन है । नो आगमभावजिन उपयुक्त और तत्परिणतके भेदसे दो प्रकारके है। इनमें जिनस्वरूपको ग्रहण करनेवाले ज्ञानसे परिणत
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