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४, १, १५] कदिअणियोगद्दारे वेउब्वियरिद्धिपरूवणा
[ ५१५ आदिपर स्थित तिल व मशा आदिको देखकर तीनों कालों सम्बन्धी सुख-दुःखादिके जान लेनेको व्यञ्जन महानिमित्त कहा जाता है। ४. हाथ और पांव आदिके ऊपर वर्तमान स्वस्तिक, नन्द्यावर्त, श्रीवृक्ष, शंख, चक्र, चन्द्र, सूर्य एवं कमल आदि चिह्नोंको देखकर तीर्थंकर, चक्रवर्ती एवं बलदेव आदि पदोंके ऐश्वर्यको जान लेना; यह लक्षण नामक महानिमित्त है । अभिप्राय यह कि उपर्युक्त चिन्होंमें यदि एक सौ आठ हों तो तीर्थंकर, चौंसठ हों तो चक्रवर्ती तथा बत्तीस हों तो बलदेव आदि (नारायण-प्रतिनारायण) पदोंकी प्राप्ति समझना चाहिये । ५. शरीर-छायाकी विपरीतताको तथा देव, दानव, राक्षस एवं मनुष्य-तिर्यंचोंके द्वारा छेदे गये शस्त्र, वस्त्र और आभूषण आदिको देखकर तीनों कालोंके सुख-दुःखको जानना; यह छिन्न नामका महानिमित्त है। ६. पृथिवीकी सघनता एवं स्निग्ध-रुक्ष आदि गुणोंको देखकर सोना, चांदी और तांबा आदिके अवस्थानको तथा पूर्वादि दिशाविभागसे स्थित सेना आदिको देखकर जय-पराजय आदिके जान लेनेको भौम महानिमित्त कहा जाता है । ७. वातादि दोषोंसे रहित होकर रात्रीके अन्तिम भागमें देखे गये चन्द्रसूर्यादिरूप शुभ तथा तैलस्नानादिरूप अशुभ स्वप्नोंको सुनकर भावी सुख-दुःखादिके जान लेनेका नाम स्वप्न महानिमित्त है । वह स्वप्न छिन्नस्वप्न और मालास्वप्नके भेदसे दो प्रकारका है। इनमें परस्परके सम्बन्धसे रहित जो हाथी एवं सिंह आदिका देखना है वह छिन्नस्वप्न कहा जाता है । जैसे-जिनमाताके द्वारा देखे जानेवाले सोलह स्वप्न । पूर्वापर घटनासे सम्बन्ध जो स्वप्न देखा जाता है वह मालास्वप्न कहलाता है। ८. सूर्य, चन्द्र, और ग्रह-नक्षत्रके उदय एवं अस्त आदिको देखकर उसके निमित्तसे सुख-दुःखादिके जान लेनेका नाम अन्तरिक्ष महानिमित्त है। जो इन आठ महानिमित्तोंमें कुशल होते हैं उनके लिये यहां नमस्कार किया गया है।
णमो विउव्वणपत्ताणं ॥१५॥ विक्रियाऋद्धिको प्राप्त हुए जिनोंको नमस्कार हो ॥ १५ ॥
अणिमा, महिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व, वशित्व और कामरूपित्व; इस प्रकारसे विक्रियाऋद्धि आठ प्रकारकी है। उनमें मेरू प्रमाण शरीरको संकुचित करके परमाणु प्रमाण शरीरसे स्थित होना अणिमा नामक विक्रियाऋद्धि है। परमाणु प्रमाण शरीरको मेरू पर्वतके बराबर करनेको महिमाऋद्धि कहते हैं। मेरू प्रमाण शरीरसे मकड़ीके तंतुओंपरसे चलनेमें निमित्तभूत शक्तिका नाम लघिमा है। भूमिमें स्थित रहकर हाथसे चन्द्र व सूर्यके बिम्बको छूनेकी शक्तिको प्राप्तिऋद्धि कहा जाता है । कुलाचल और मेरू पर्वत सम्बन्धी पृथिवीकायिक जीवोंको बाधा न पहुंचाकर उनके भीतरसे जा सकनेका नाम प्राकाम्यऋद्धि है। सब जीवों तथा ग्राम, नगर एवं खेड़े आदिकोंके भोगनेकी जो शक्ति उत्पन्न होती है वह ईशित्व ऋद्धि कही जाती है। मनुष्य, हाथी, सिंह, एवं घोड़े आदिरूप अपनी इच्छासे विक्रिया करने की शक्तिका नाम वशित्वऋद्धि है अथवा समस्त प्राणियोंको वशमें कर सकनेका नाम वशित्वऋद्धि है। इच्छित रूपके ग्रहण करनेकी शक्तिका नाम कामरूपित्व है । इस आठ प्रकारकी विक्रियाशक्तिसे संयुक्त जिनोंको नमस्कार हो ।
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