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लेस्सामग्गणाए बंध-सामित्तं
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द्विस्थानिक प्रकृतियोंकी प्ररूपणा ओघके समान है ।। २६१ ॥ असातावेदनीयकी प्ररूपणा ओघके समान है || २६२ ॥
मिच्छत्त-णवुंसयवेद - एइंदियजादि - हुंडसंठाण - असंपत्तसेवट्टसंघडण - आदाव- थावरगामा को बंधो को अबंधो ? || २६३ ॥
मिथ्यात्व, नपुंसकवेद, एकेन्द्रिय जाति, हुण्डसंस्थान, असंप्राप्तासृपाटिकासंहनन, आताप और स्थावर नामकर्मका कौन बन्धक है और कौन अबन्धक है ? ॥ २६३ ॥
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मिच्छाइट्ठी बंधा । एदे बंधा, अवसेसा अबंधा ॥ २६४ ॥ मिथ्यादृष्टि बन्धक हैं । ये बन्धक हैं, शेष अबन्धक हैं ॥ २६४ ॥ अपच्चक्खाणावरणीय मोघं ॥ २६५ ॥ पच्चक्खाण चउक्कमोघं ॥ २६६ ॥ अप्रत्याख्यानावरणीयचतुष्ककी प्ररूपणा ओघके समान है ॥ २६५ ॥ प्रत्याख्यानावरणचतुष्ककी प्ररूपणा ओघके समान है ॥ २६६ ॥
मणुस्साउअस्स ओघभंगो || २६७ || देवाउअस्स ओघभंगो ।। २६८ ।।
मनुष्यायुकी प्ररूपणा ओघके समान है || २६७ ॥ देवायुकी प्ररूपणा ओघके समान है ॥ आहार सरीर - आहारसरीर अंगोवंगणामाणं को बंधो को अबंधो ? अप्पमत्त संजदा बंधा । एदे बंधा, अवसेसा अबंधा ।। २६९ ।।
आहार शरीर और आहारकशरीरांगोपांग नामकर्मका कौन बन्धक है और कौन अबन्धक है ? अप्रमत्तसंयत बन्धक हैं । ये बन्धक हैं, शेष अबन्धक हैं ॥ २६९ ॥
तित्रणामा को बंधो को अबंधो ? असंजदसम्माइट्ठी जाव अप्पमत्तसंजदा बंधा । एदे बंधा, अवसेसा अबंधा ।। २७० ।
तीर्थंकर नामकर्मका कौन बन्धक है और कौन अबन्धक है ? असंयतसम्यग्दृष्टियोंसे लेकर अप्रमत्तसंयत तक बन्धक हैं । ये बन्धक हैं, शेष अबन्धक हैं ॥ २७० ॥ पम्मलेस्सिएसु मिच्छत्तदंडओ रइयभंगो || २७१ ।।
पद्मश्यावाले जीवोंमें मिध्यात्वदण्डककी प्ररूपणा नारकियोंके समान है ।। २७९ ॥ सुक्कलेस्सिएसु जाव तित्थयरे त्ति ओघभंगो ।। २७२ ॥
शुक्लश्यावाले जीवोंमें तीर्थंकर प्रकृति तक ओघके समान प्ररूपणा है || २७२ ॥ वर विसेस, सादावेदणीयस्स मणजोगिभंगो ॥ २७३ ॥
विशेषता इतनी है कि सातावेदनीयकी प्ररूपणा मनोयोगियोंके समान है ॥ २७३ ॥ बेणि एकट्टाणी वगेवज्जवि माणवासि यदेवाणभंगो ॥ २७४ ॥
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