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छक्खंडागमे बंध-सामित्त-विचओ
[३, २८८
असंजदसम्मादिट्ठी संजदासंजदा बंधा । एदे बंधा, अवसेसा अबंधा ॥ २८८ ॥ असंयतसम्यग्दृष्टि और संयतासंयत बन्धक हैं । ये बन्धक हैं, शेष अबन्धक हैं ॥२८८॥ देवाउअस्स को बंधो को अबंधो ? ॥ २८९ ॥ देवायुका कौन बन्धक है और कौन अबन्धक है ? ॥ २.८९ ॥
असंजदसम्मादिद्विप्पहुडि जाव अप्पमत्तसंजदा बंधा । अप्पमत्तद्धाए संखेज्जे भागे गंतूण बंधो वोच्छिज्जदि । एदे बंधा, अवसेसा अबंधा ॥ २९० ॥
असंयतसम्यग्दृष्टि से लेकर अप्रमत्तसंयत तक बन्धक हैं । अप्रमत्तकालके संख्यात बहुभाग जाकर बन्ध व्युच्छिन्न होता है । ये बन्धक है, शेष अबन्धक हैं ? ॥ २९० ॥
आहारसरीर-आहारसरीरअंगोवंगणामाणं को बंधो को अबंधो ? ॥ २९१ ॥
आहारकशरीर और आहारकशरीरांगोपांग नामकोका कौन बन्धक है और कौन अबन्धक है ? ।। २९१ ॥
अप्पमत्तसंजदा बंधा । एदे बंधा, अवसेसा अबंधा ॥ २९२ ॥ अप्रमत्तसंयत बन्धक हैं । ये बन्धक है, शेष अबन्धक हैं ॥ २९२ ॥
उवसमसम्मादिट्ठीसु पंचणाणावरणीय - चउदंसणावरणीय - जसकित्ति - उच्चागोदपंचतराइयाणं को बंधो को अबंधो ? ॥ २९३ ॥
उपशमसम्यग्दृष्टि जीवोंमें पांच ज्ञानावरणीय, चार दर्शनावरणीय, यशःकीर्ति, उच्चगोत्र और पांच अन्तरायका कौन बन्धक है और कौन अबन्धक है ? ॥ २९३ ॥
असंजदसम्मादिटिप्पहुडि जाव सुहुमसांपराइयउवसमा बंधा। सुहुमसांपराइयउवसमद्धाए चरिमसमयं गंतूण बंधो वोच्छिज्जदि । एदे बंधा, अवसेसा अबंधा ॥ २९४ ॥
असंयतसम्यग्दृष्टि से लेकर सूक्ष्मसाम्परायिक उपशमक तक बन्धक हैं । सूक्ष्मसाम्परायिक उपशमककालके अन्तिम समयमें जाकर बन्ध व्युच्छिन्न होता है । ये बन्धक हैं, शेष अबन्धक हैं ।
णिद्दा-पयलाणं को बंधो को अबंधो ? ॥ २९५ ॥ निद्रा और प्रचलाका कौन बन्धक है और कौन अबन्धक है ? ॥ २९५ ॥
असंजदसम्मादिट्टिप्पहुडि जाव अपुवकरणउवसमा बंधा । अपुवकरणउवसमद्धाए संखेज्जदिमं भागं गंतूण बंधो वोच्छिज्जदि । एदे बंधा, अवसेसा अबंधा ॥ २९६ ॥
असंयतसम्यग्दृष्टिसे लेकर अपूर्वकरण उपशमक तक बन्धक हैं। अपूर्वकरण उपशमकालका संख्यातवां भाग जाकर बन्ध व्युच्छिन्न होता है । ये बन्धक हैं, शेष अबन्धक हैं ॥२९६॥
सादावेदणीयस्स को बंधो को अबंधो ? ॥ २९७ ॥ सातावेदनीयका कौन बन्धक है और कौन अबन्धक है ? ॥ २९७ ॥
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