________________
५०४]
छक्खंडागमे बंध-सामित्त-विचओ
[३,२७५
विस्थानिक और एकस्थानिक प्रकृतियोंकी प्ररूपणा नौ अवेयक विमानबासी देवोंके समान है ॥ २७४ ॥
भवियाणुवादेण भवसिद्धियाणमोघं ॥ २७५ ॥ भव्यमार्गणानुसार भव्यसिद्धिक जीवोंकी प्ररूपणा ओघके समान है ॥ २७५ ॥
अभवसिद्धिएसु पंचणाणावरणीय - णवदंसणावरणीय - सादासाद -मिच्छत्त-सोलसकसाय-णवणोकसाय - चदुआउ - चदुगइ -पंचजादि-ओरालिय-वेउब्विय-तेजा कम्मइयसरीरछसंठाण-ओरालिय चेउन्वियअंगोवंग-छसंघडण-वण्ण गंध-रस-फास - चत्तारिआणुपुव्वी-अगुरुवलहुव-उवघाद-परघाद-उस्सास-आदावुज्जोव - दोविहायगइ-तस-बादर-थावर-सुहुम-पज्जत्तअपज्जत्त-पत्तेय-साहारणसरीर-थिराथिर-सुहासुह-सुभग-दुभग-सुस्सर- दुस्सर-आदेज्ज-अणादेज्ज-जसकित्ति-अजसकित्ति-णिमिण-णीचुच्चागोद-पंचंतराइयाणं को बंधो को अबंधो? ॥ .. . अभव्यसिद्धिक जीवोंमें पांच ज्ञानावरणीय, नौ दर्शनावरणीय, साता व असाता वेदनीय, . मिथ्यात्व, सोलह कषाय, नौ नोकषाय, चार आयु, चार गतियां, पांच जातियां, औदारिक, वैक्रियिक, तैजस व कार्मण शरीर, छह संस्थान, औदारिक व वैक्रियिक अंगोपांग, छह संहनन, वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श, चार आनुपूर्वी, अगुरुलघु, उपघात, परघात, उच्छ्वास, आताप, उद्योत, दो विहायोगतियां, त्रस, बादर, स्थावर, सूक्ष्म, पर्याप्त, अपर्याप्त, प्रत्येकशरीर, साधारणशरीर, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, सुभग, दुर्भग, सुस्वर, दुःस्वर, आदेय, अनादेय, यशःकीर्ति, अयशःकीर्ति, निर्माण, नीच व उच्चगोत्र और पांच अन्तराय; इनका कौन बन्धक है और कौन अबन्धक है ? ॥ २७६ ॥
सव्वे एदे बंधा, अबंधा णत्थि ॥ २७७॥ ये सभी बन्धक हैं, अबन्धक नहीं हैं ॥ २७७ ॥ सम्मत्ताणुवादेण सम्माइट्ठीसु खइयसम्माइट्ठीसु आभिणियोहियणाणिभंगो॥२७८॥
सम्यक्त्वमार्गणानुसार सम्यग्दृष्टिं और क्षायिकसम्यग्दृष्टि जीवोंमें प्रकृत प्ररूपणा आभिनिबोधिकज्ञानियोंके समान है ॥ २७८ ॥
णवरि सादावेदणीयस्स को बंधो को अबंधो ? ॥ २७९ ॥ विशेषता यह है कि सातावेदनीयका कौन बन्धक है और कौन अबन्धक है ? ॥२७९॥
असंजदसम्माइट्ठिप्पहुडि जाव सजोगिकेवली बंधा, सजोगिकेवलिअद्धाए चरिमसमयं गंतूण बंधो वोच्छिज्जदि । एदे बंधा, अवसेसा अबंधा ॥ २८० ॥
... असंयतसम्यग्दृष्टि से लेकर सयोगिकेवली तक बन्धक हैं, सजोगकेवलीकालके अन्तिम समयमें जाकर बन्ध व्युछिन्न होता है ? ये बन्धक हैं, शेष अबन्धक हैं ॥ २८० ॥
वेदयसम्मादिट्ठीसु पंचणाणावरणीय -छदंसणावरणीय - सादावेदणीय-चउसंजलणपुरिसवेद-हस्स-रदि-भय-दुगुच्छा-देवगदि-पंचिंदियजादि-वेउब्विय-तेजा-कम्मइयसरीर-समच
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org