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३, २२२ ] णाणमग्गणाए बंध-सामित्तं
[४९७ असंयतसम्यग्दृष्टि से लेकर क्षीणकषाय-वीतराग-छमस्थ तक बन्धक हैं। ये बन्धक हैं, अबन्धक नहीं है ॥ २१४ ॥
सेसमोपं जाव तित्थयरे ति । णवरि असंजदसम्मादिहिप्पहुडि त्ति भाणिदव्वं ॥
असातावेदनीय आदि तीर्थंकर प्रकृति तक शेष प्रकृतियोंकी प्ररूपणा ओघके समान है। विशेषता केवल इतनी है कि उनके बन्धकोंकी प्ररूपणामें असंयतसम्यग्दृष्टिसे लेकर, ऐसा कहना चाहिये ॥ २१५॥
इसका कारण यह है कि यहां जिन आभिनिबोधिक आदि तीन ज्ञानोंका प्रकरण है वे असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानसे नीचेके गुणस्थानोंमें नहीं पाये जाते हैं।
___ मणपज्जवणाणीसु पंचणाणावरणीय - चउदंसणावरणीय-जसकित्ति-उच्चागोद-पंचतराइयाणं को बंधो को अबंधो ? ॥ २१६ ॥
____ मनःपर्ययज्ञानियोंमें पांच ज्ञानावरणीय, चार दर्शनावरणीय, यशःकीर्ति, उच्चगोत्र और पांच अन्तरायका कौन बन्धक है और कौन अबन्धक है ? ॥ २१६ ॥
पमत्तसंजदप्पहुडि जाव सुहुमसांपराइयउवसमा खवा बंधा । सुहुमसांपराइयसंजदद्धाए चरिमसमयं गंतूण बंधो वोच्छिज्जदि । एदे बंधा, अवसेसा अबंधा ।। २१७ ॥
प्रमत्तसंयतसे लेकर सूक्ष्मसाम्परायिक उपशमक व क्षपक तक बन्धक हैं। सूक्ष्मसाम्परायिक-संयतकालके अन्तिम समयमें जाकर बन्ध व्युच्छिन्न होता है । ये बन्धक हैं, शेष अबन्धक हैं ।
णिहा-पयलाणं को बंधो को अबंधो? ॥ २१८ ॥ निद्रा और प्रचलाका कौन बन्धक है और कौन अबन्धक है ? ॥ २१८ ॥
पमत्तसंजदप्पहुडि जाव अपुव्वकरण-पइट्ट-उवसमा खवा बंधा । अपुचकरणद्धाए संखेज्जदिमं भागं गंतूण बंधो वोच्छिज्जदि । एदे बंधा, अवसेसा अबंधा ॥ २१९ ॥
प्रमत्तसंयतसे लेकर अपूर्वकरण-प्रविष्ट उपशमक व क्षपक तक बन्धक हैं। अपूर्वकरणकालके संख्यातवें भाग जाकर बन्ध व्युच्छिन्न होता है । ये बन्धक हैं शेष अबन्धक हैं ॥ २१९ ॥
सादावेदणीयस्स को बंधो को अबंधो १ ॥ २२० ॥ सातावेदनीयका कौन बन्धक है और कौन अबन्धक है ? ॥ २२० ॥
पमत्तसंजदप्पहुडि जाव खीणकसायचीयराय-छदुमत्था बंधा । एदे बंधा, अबंधा णत्थि ॥ २२१॥
प्रमत्तसंयतसे लेकर क्षीणकषाय-वीतराग-छद्मस्थ तक बन्धक हैं। ये बन्धक हैं, अबन्धक नहीं हैं ॥ २२१ ॥
सेसमोघं जाव तित्थयरे ति । णवरि पमत्तसंजदप्पहुडि ति भाणिदव्वं ॥२२२॥ छ. ६३
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