________________
२, ६, ८५] खेत्ताणुगमे णाणमग्गणा
[४१३ वेदमार्गणाके अनुसार स्त्रीवेदी और पुरुषवेदी जीव स्वस्थान, समुद्धात और उपपादकी अपेक्षा कितने क्षेत्रमें रहते हैं ? ॥६९॥ उक्त पदोंसे वे लोकके असंख्यातवें भागमें रहते हैं ॥ ७० ॥
णवूपयवेदा सत्याणेण समुग्धादेण उववादण केवडि खेत्ते ? ॥७१॥ सव्वलोए॥
नपुंसकवेदी जीव स्वस्थान, समुद्घात और उपपादसे कितने क्षेत्रमें रहते हैं ? ॥ ७१ ।। उक्त तीनों पदोंसे वे सर्व लोकमें रहते हैं ॥ ७२ ॥
अवगदवेदा सत्थाणेण केवडिखेत्ते ॥७३॥ लोगस्स असंखेज्जदिभागे ॥७४।।
अपगतवेदी जीव स्वस्थानसे कितने क्षेत्रमें रहते हैं ? ।। ७३ ॥ अपगतवेदी जीव स्वस्थानसे लोकके असंख्यातवें भागमें रहते हैं ॥ ७४ ॥
समुग्धादेण केवडिखेत्ते ? ।। ७५ ॥ लोगस्स असंखेज्जदिभागे असंखेज्जेसु वा भागेसु सबलोगे वा ॥ ७६ ।।
अपगतवेदी जीव समुद्घातकी अपेक्षा कितने क्षेत्रमें रहते हैं ? ॥ ७५ ॥ समुद्घातकी अपेक्षा वे लोकके असंख्यातो भागमें, अथवा असंख्यात बहुभागोंमें, अथवा सर्व लोकोंमें रहते हैं ।
उववादं णत्थि ॥ ७७॥ अपगतवेदी जीवोंके उपपाद पद नहीं होता ।। ७७ ॥ कसायाणुवादेण कोधकसाई माणकसाई मायकसाई लोभकसाई णवुसयवेदभंगो॥
कषायमार्गणाके अनुसार क्रोधकषायी, मानकषायी, मायाकषायी और लोभकषायी जीवोंके क्षेत्रकी प्ररूपणा नपुंसकवेदियोंके समान है ॥ ७८ ॥
अकसाई अवगदवेदभंगो ॥ ७९ ॥ अकषायी जीवोंके क्षेत्रकी प्ररूपणा अपगतवेदियोंके समान है ॥ ७९ ॥ णाणाणुवादेण मदिअण्णाणी सुद-अण्णाणी णवुसयवेदभंगो ॥ ८० ॥ ज्ञानमार्गणाके अनुसार मत्यज्ञानी और श्रुताज्ञानियोंका क्षेत्र नपुंसकवेदियोंके समान है ॥
विभंगणाणि-मणपज्जवणाणी सत्थाणेण समुग्घादेण केवडिखेत्ते ? ॥ ८१ ॥ लोगस्स असंखेज्जदिभागे ॥ ८२ ॥
विभंगज्ञानी और मनःपर्ययज्ञानी जीव स्वस्थान व समुद्घातसे कितने क्षेत्रमें रहते हैं ? ॥८१॥ विभंगज्ञानी और मनःपर्ययज्ञानी जीव उक्त दो पदोंसे लोकके असंख्यातवें भागमें रहते हैं ।
उववादं णस्थि ॥ ८३ ॥ विभंगज्ञानी और मनःपर्ययज्ञानी जीवोंके उपपाद पद नहीं होता ॥ ८३ ॥
आभिणियोहिय-सुद-ओधिणाणी सत्थाणेण समुग्घादेण उववादेण केवडिखेत्ते ? ।। ८४ ॥ लोगस्स असंखेज्जदिभागे ।। ८५ ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org