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४८०] छक्खंडागमे बंध-सामित्त-विचओ
[३, ८० मिच्छाइट्ठी सासणसम्माइट्ठी बंधा । एदे बंधा, अवसेसा अबंधा ॥ ८० ॥ मिथ्यादृष्टि और सासादनसम्यग्दृष्टि बन्धक हैं। ये बन्धक हैं, शेष देव अबन्धक हैं ॥८॥
मिच्छत्त-णqसयवेद-एइंदियजादि-हुंडसंठाण - असंपत्तसेवट्टसंघडण -आदाव-थावरणामाणं को बंधो को अबंधो ? ॥ ८१ ॥
मिथ्यात्व, नपुंसकवेद, एकेन्द्रिय जाति, हुण्डसंस्थान, असंप्राप्तासृपाटिकासंहनन, आताप और स्थावर; इनका कौन बन्धक और कौन अबन्धक है ? ।। ८१ ॥
मिच्छाइट्ठी बंधा । एदे बंधा, अवसेसा अबंधा ॥ ८२ ॥ मिथ्यादृष्टि बन्धक हैं । ये बन्धक हैं, शेष अबन्धक हैं ॥ ८२ ॥ मणुस्साउअस्स को बंधो को अबंधो ? ॥ ८३॥ मनुष्यायुका कौन बन्धक और कौन अबन्धक है ? ॥ ८३ ॥ मिच्छाइट्ठी सासणसम्माइट्ठी असंजदसम्माइट्ठी बधा । एदे बंधा, अवसेसा अबंधा।
मिथ्यादृष्टि, सासादनसम्यग्दृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि बन्धक हैं। ये बन्धक हैं, शेष देव अबन्धक हैं ॥ ८४ ॥
तित्थयरणामकम्मस्स को बंधो को अबंधो १ ॥ ८५ ॥ . तीर्थंकर नामकर्मका कौन बन्धक और कौन अबन्धक है ? ॥ ८५ ॥ असंजदसम्माइट्ठी बंधा । एदे बंधा, अवसेसा अबंधा ।। ८६ ॥ असंयतसम्यग्दृष्टि देव बन्धक हैं । ये बन्धक हैं, शेष देव अबन्धक हैं ॥ ८६ ॥ भवणवासिय-वाणवेंतर-जोदिसियदेवाणं देवभंगो । णवरि विससो, तित्थयरं णत्थि ॥
भवनवासी, वानव्यन्तर और ज्योतिषी देवोंकी प्ररूपणा सामान्य देवोंके समान है। विशेषता केवल यह है कि इन देवोंके तीर्थंकर प्रकृतिका बन्ध नहीं होता है ॥ ८७ ॥
सोहम्मीसाणकप्पवासियदेवाणं देवभंगो ।। ८८ ॥ सौधर्म व ईशान कल्पवासी देवोंकी प्ररूपणा सामान्य देवोंके समान है ॥ ८८ ॥
सणक्कुमारप्पहुडि जाव सदर-सहस्सारकप्पवासियदेवाणं पढमाए पुढवीए णेरइयाणं भंगो ॥ ८९॥
सानत्कुमार कल्पसे लेकर शतार-सहस्रारकल्पवासी देवों तककी प्ररूपणा प्रथम पृथिवीके नारकियोंके समान है ॥ ८९ ॥
आणद जाव णवगेवज्जविमाणवासियदेवेसु पंचंणाणावरणीय -छदंसणावरणीयसादासाद-बारसकसाय-पुरिसवेद-हस्स-रदि- [अरदि-] सोग-भय-दुगुंछा-मणुसगइ -पंचिंदियजादि-ओरालिय- तेजा - कम्मइयसरीर-समचउरससंठाण-ओरालियसरीरअंगोवंग-वज्जरिसह
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