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४८४ ] छक्खंडागमे बंध-सामित्त-विचओ
[ ३, १११ जाकर बन्धव्युच्छेद होता है । ये बन्धक हैं, शेष अबन्धक हैं ॥ ११० ॥
___ असादावेदणीय - अरदि-सोग- अथिर-असुह - अजसकित्तिणामाणं को बंधो को अबंधो ? ॥१११॥
असातावेदनीय, अरति, शोक, अस्थिर, अशुभ और अयशःकीर्ति; इनका कौन बन्धक है और कौन अबन्धक है ? ॥ १११ ।।
मिच्छाइटिप्पहुडि जाव पमत्तसंजदो ति बंधा । एदे बंधा, अवसेसा अबंधा ॥ . मिथ्यादृष्टि से लेकर प्रमत्तसंयत तक बन्धक हैं । ये बन्धक हैं, शेष अबन्धक हैं ॥११२॥
मिच्छत्त-णqसयवेद-णिरयाउ-णिरयगइ-एइंदिय-बीइंदिय-तीइंदिय-चउरिंदियजादिहुंडसंठाण-असंपत्तसेवसंघडण-णिरयाणुपुवी-आदाव-थावर - सुहुम -अपज्जत्त-साहारणसरीरणामाणं को बंधो को अबंधो ? ॥११३ ॥
__ मिथ्यात्व, नपुंसकवेद, नारकायु, नरकगति, एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय व चतुरिन्द्रिय जाति, हुण्डसंस्थान, असंप्राप्तासृपाटिकासंहनन, नरकगतिप्रायोग्यानुपूर्वी, आताप, स्थावर, सूक्ष्म, अपर्याप्त और साधारणशरीर; इनका कौन बन्धक है और कौन अबन्धक है ? ॥ ११३ ॥
मिच्छाइट्ठी बंधा । एदे बंधा, अवसेसा अबंधा ॥ ११४ ॥ मिथ्यादृष्टि बन्धक हैं । ये बन्धक हैं, शेष अबन्धक हैं ॥ ११४ ॥
अपच्चक्खाणावरणीयकोध-माण-माया-लोभ-मणुसगइ -ओरालियसरीर-ओरालियसरीरअंगोवंग-चज्जरिसहवइरणारायणसरीरसंघडण - मणुसगइपाओग्गाणुपुषिणामाणं को बंधो को अबंधो १ ॥११५॥
- अप्रत्याख्यानावरणीय क्रोध, मान, माया व लोभ, मनुष्यगति, औदारिकशरीर, औदारिकशरीरांगोपांग, वर्षभवज्रनाराचशरीरसंहनन और मनुष्यगतिप्रायोग्यानुपूर्वी; इनका कौन बन्धक है और कौन अबन्धक है ? ॥ ११५॥
मिच्छाइडिप्पहुडि जाव असंजदसम्मादिट्ठी बंधा । एदे बंधा, अवसेसा अबंधा॥ मिथ्यादृष्टि से लेकर असंयतसम्यग्दृष्टि तक बन्धक हैं । ये बन्धक हैं, शेष अबन्धक हैं । पच्चक्खाणावरणकोध-माण-माया-लोभाणं को बंधो को अबंधो ? ॥११७॥ प्रत्याख्यानावरण क्रोध, मान, माया और लोभका कौन बन्धक और कौन अबन्धक है ? ॥ मिच्छादिटिप्पहुडि जाव संजदासंजदा बंधा । एदे बंधा, अवसेसा अबंधा ॥११८॥ मिथ्यादृष्टिसे लेकर संयतासंयत तक बन्धक हैं । ये बन्धक हैं, शेष अबन्धक हैं ॥११८॥ पुरिसवेद कोधसंजलणाणं को बंधो को अबंधो ? ॥ ११९ ॥ पुरुषवेद और संज्वलन क्रोधका कौन बन्धक और कौन अबन्धक है ? ॥ ११९ ॥
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