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३, ११० ] इंदियमग्गणाए बंध-सामित्तं
[४८३ ___पंचेन्द्रिय और पंचेन्द्रिय पर्याप्तक जीवोंमें पांच ज्ञानावरणीय, चार दर्शनावरणीय, यश:कीर्ति, उच्चगोत्र और पांच अन्तराय; इनका कौन बन्धक है और कौन अबन्धक है ? ॥ १०३ ॥
मिच्छाइटिप्पहुडि जाव सुहुमसांपराइय-सुद्धि-संजदेसु उवसमा खवा बंधा । सुहुमसांपराइय-सुद्धि-संजदद्धाए चरिमसमयं गंतूण बंधो वोच्छिज्जदि । एदे बंधा, अवसेसा अबंधा ॥ १०४॥
मिथ्यादृष्टिसे लेकर सूक्ष्मसाम्परायिक-सुद्धिसंयतोंमें उपशमक व क्षपक तक बन्धक हैं । सूक्ष्मसाम्परायिक-शुद्धिसंयतकालके अन्तिम समयमें जाकर बन्ध व्युच्छिन्न होता है। ये बन्धक हैं, शेष अबन्धक हैं ॥ १०४ ॥
णिदाणिहा-पयलापयला-थीणगिद्धि-अणंताणुबंधिकोध-माण -माया-लोभ-इत्थिवेदतिरिक्खाउ-तिरिक्खगइ-चउसंठाण-चउसंघडण-तिरिक्खगइपाओग्गाणुपुवी-उज्जोव-अप्पसत्थविहायगइ-दुभग-दुस्सर-अणादेज्ज-णीचागोदाणं को बंधो को अबंधो ? ॥ १०५ ॥
निद्रानिद्रा, प्रचलाप्रचला, स्त्यानगृद्धि, अनन्तानुबन्धी क्रोध, मान, माया व लोभ, स्त्रीवेद, तिर्यगायु, तिर्यग्गति, चार संस्थान, चार संहनन, तिर्यग्गतिप्रायोग्यानुपूर्वी, उद्योत, अप्रशस्त विहायोगति, दुर्भग, दुःस्वर, अनादेय और नीचगोत्र; इनका कौन बन्धक है और कौन अबन्धक है ? ॥
मिच्छाइट्ठी सासणसम्माइट्ठी बंधा । एदे बंधा, अवसेसा अबंधा ॥ १०६ ॥ मिथ्यादृष्टि और सासादनसम्यग्दृष्टि बन्धक हैं । ये बन्धक हैं, शेष अबन्धक हैं ॥१०॥ णिहा-पयलाणं को बंधो को अबंधो ? ॥१०७॥ निद्रा और प्रचलाका कौन बन्धक और कौन अबन्धक है ? ॥ १०७ ॥
मिच्छाइटिप्पहुडि जाव अपुव्वकरण-पविट्ठ-सुद्धि-संजदेसु उवसमा खवा बंधा । अपुवकरणसंजदद्धाए संखेज्जदिमं भागं गंतूण बंधो वोच्छिज्जदि । एदे बंधा, अवसेसा अबंधा ॥ १०८ ॥
मिथ्यादृष्टिसे लेकर अपूर्वकरण-प्रविष्ट-शुद्धि-संयतोंमें उपशमक व क्षपक तक बन्धक हैं। अपूर्वकरण-संयतकालके संख्यातवें भाग जाकर बन्ध व्युच्छिन्न होता है। ये बन्धक हैं, शेष अबन्धक हैं ॥ १०८॥
सादावेदणीयस्स को बंधो को अबंधो ? ॥१०९॥ सातावेदनीयका कौन बन्धक और कौन अबन्धक है ? ॥ १०९ ॥
मिच्छाइट्रिप्पहडि जाव सजोगिकेवली बंधा । सजोगिकेवलिअद्धाए चरिमसमयं गंतूण बंधो वोच्छिज्जदि । एदे बंधा, अवसेसा अबंधा ॥ ११० ॥
मिथ्यादृष्टि से लेकर सयोगिकेवली तक बन्धक हैं। सयोगिकेवलिकालके अन्तिम समयमें
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