________________
३, ९६] देवगदीए बंध-सामित्तं
[४८१ संघडण-चण्ण-गंधरस-फास-मणुसगइपाओग्गाणुपुची-अगुरुवलहुव-उवधाद-परघाद - उस्सासपसत्थविहायगइ-तस-चादर-पज्जत्त-पत्तेयसरीर-थिराथिर-सुहासुह-सुभग-सुस्सर-आदेज्ज-जसकित्ति-अजसकित्ति-णिमिण-उच्चागोद-पंचंतराइयाणं को बंधो को अबंधो ? ॥९० ॥
आनत कल्पसे लेकर नौ ग्रैवेयक तक विमानवासी देवोंमें पांच ज्ञानावरणीय, छह दर्शनावरणीय, साता व असाता वेदनीय, बारह कषाय, पुरुषवेद, हास्य, रति, [अरति, ] शोक, भय, जुगुप्सा, मनुष्यगति, पंचेन्द्रिय जाति, औदारिक, तैजस व कार्मण शरीर, समचतुरस्रसंस्थान, औदारिकशरीरांगोपांग, वज्रर्षभसंहनन, वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श, मनुष्यगतिप्रायोग्यानुपूर्वी, अगुरुलघु, उपघात, परघात, उच्छ्वास, प्रशस्त विहायोगति, त्रस, बादर, पर्याप्त, प्रत्येकशरीर, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, सुभग, सुस्वर, आदेय, यश कीर्ति, अयश कीर्ति, निर्माण, उच्चगोत्र और पांच अन्तराय; इनका कौन बन्धक और कौन अबन्धक है ? ॥ ९० ॥
मिच्छाइटिप्पहुडि जाव असंजदसम्मादिट्ठी बंधा । एदे बंधा, अबंधा णत्थि ॥
___ मिथ्यादृष्टि से लेकर असंयतसम्यग्दृष्टि तक बन्धक हैं। ये बन्धक हैं, अबन्धक नहीं हैं ॥ ९१ ॥
णिदाणिद्दा-पयलापयला-थीणगिद्धि-अणंताणुबंधिकोध-माण-माया-लोभ - इत्थिवेदचउसंठाण-चउसंघडण-अप्पसस्थविहायगइ-दुभग-दुस्सर-अणादेज्ज-णीचागोदाणं को बंधो को अबंधो ? ॥ ९२ ॥
निद्रानिद्रा, प्रचलाप्रचला, स्त्यानगृद्धि, अनन्तानुबन्धी क्रोध, मान, माया व लोभ, स्त्रीवेद, चार संस्थान, चार संहनन, अप्रशस्त विहायोगति, दुर्भग, दुःस्वर, अनादेय और नीचगोत्र, इनका कौन बन्धक है और कौन अबन्धक है ? ॥ ९२ ॥
मिच्छाइट्ठी सासणसम्माइट्टी बंधा । एदे बंधा, अवसेसा अबंधा ॥ ९३ ॥ मिथ्यादृष्टि और सासादनसम्यग्दृष्टि बन्धक हैं । ये बन्धक हैं, शेष देव अबन्धक हैं ॥
मिच्छत्त - णqसयवेद - हुंडसंठाण - असंपत्तसेवट्टसंघडणणामाणं को बंधो को अबंधो ? ॥ ९४ ॥
मिथ्यात्व, नपुंसकवेद, हुण्डसंस्थान और असंप्राप्तासृपाटिकासंहनन; इनका कौन बन्धक और कौन अबन्धक है ? ॥ ९४ ॥
मिच्छाइट्ठी बंधा । एदे बंधा, अवसेसा अबंधा ॥ ९५ ॥ मिथ्यादृष्टि बन्धक हैं । ये बन्धक हैं, शेष देव अबन्धक हैं ॥ ९५ ॥ मणुस्साउस्स को बंधो को अबंधो १ ॥९६ ॥ मनुष्यायुका कौन बन्धक और कौन अबन्धक है ? ॥ ९६ ॥
छ.६१
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org