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छक्खंडागमे बंध-सामित्त-विचओ [ ३, १८९ मिच्छाइटिप्पहुडि जाव अणियट्टि त्ति उवसमा खवा बंधा । एदे बंधा, अबंधा णस्थि ॥१८९ ॥ .
मिथ्यादृष्टि से लेकर अनिवृत्तिकरण गुणस्थानके उपशमक और क्षपक तक बन्धक हैं। ये बन्धक हैं, अबन्धक नहीं हैं ॥ १८९ ।।
बेहाणी ओघं ॥ १९ ॥ स्त्यानगृद्धि आदि द्विस्थानिक प्रकृतियोंकी प्ररूपणा ओघके समान है ॥ १९० ॥ जाव पच्चक्खाणावरणीयमोघं ॥ १९१॥ प्रत्याख्यानावरणीय तक सब प्रकृतियोंकी प्ररूपणा ओघके समान है ॥ १९१ ॥ पुरिसवेदे ओघं ॥ १९२ ॥ पुरुषवेदकी प्ररूपणा ओघके समान है ॥ १९२ ॥ हस्स-रदि जाव तित्थयरे ति ओघं ॥ १९३ ॥ हास्य व रतिसे लेकर तीर्थंकर प्रकृति तक ओघके समान प्ररूपणा है ।। १९३ ॥
माणकसाईसु पंचणाणावरणीय - चउदंसगावरणीय - सादावेदणीय - तिण्णिसंजलणजसकित्ति-उच्चागोद-पंचंतराइयाणं को बंधो को अबंधो ? ॥ १९४ ॥
मानकषायी जीवोंमें पांच ज्ञानावरणीय, चार दर्शनावरणीय, सातावेदनीय, मान आदि तीन संज्वलन, यशःकीर्ति, उच्चगोत्र और पांच अन्तरायका कौन बन्धक है और कौन अबन्धक है ? ॥
मिच्छाइटिप्पहुडि जाव अणियट्टी उवसमा खवा बंधा। एदे बंधा, अबंधा णत्थि ॥ १९५॥
मिथ्यादृष्टि से लेकर अनिवृत्तिकरण गुणस्थानवर्ती उपशमक व क्षपक तक बन्धक हैं। ये बन्धक हैं, अबन्धक नहीं हैं ॥ १९५ ॥
बेट्टाणि जाव पुरिसवेद-कोधसंजलणाणमोघं ॥ १९६ ॥
द्विस्थानिक प्रकृतियोंको आदि लेकर पुरुषवेद और संचलन क्रोध तक ओघके समान प्ररूपणा है ।। १९६ ॥
हस्स-रदि जाव तित्थयरे त्ति ओघं ॥ १९७ ॥ हास्य व रतिसे लेकर तीर्थंकर प्रकृति तक ओघके समान प्ररूपणा है ॥ १९७ ॥
मायकसाईसु पंचणाणावरणीय-चउदंसणावरणीय-सादावेदणीय-दोण्णिसंजलण-जसकित्ति-उच्चागोद-पंचंतराइयाणं को बंधो को अबंधो? ॥ १९८॥
___मायाकषायी जीवोंमें पांच ज्ञानावरणीय, चार दर्शनावरणीय, सातावेदनीय, माया व लोभ संचलन, यशःकीर्ति, उच्चगोत्र और पांच अन्तराय; इनका कौन बन्धक है और कौन अबन्धक है ? ।।
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