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३, १२८ ] इंदियमग्गणाए बंध-सामित्तं
[४८५ मिच्छादिटिप्पहुडि जाव अणियट्टि-चादर-सांपराइय-पविट्ठउवसमा खवा बंधा । अणियट्टिबादरद्धाए सेसे संखेज्जाभागे-गंतूण बंधो वोच्छिज्जदि । एदे बंधा, अवसेसा अबंधा ॥ १२०॥
मिथ्यादृष्टिसे लेकर अनिवृत्तिकरण-बादर-साम्परायिक-प्रविष्ट उपशमक व क्षपक तक बन्धक हैं ? अनिवृत्तिकरण बादर-कालके शेषमें संख्यात बहुभागोंके बीत जानेपर बन्ध व्युच्छिन्न होता है । ये बन्धक हैं, शेष अबन्धक हैं । १२० ॥
माण-मायासंजलणाणं को बंधो को अबंधो ? ॥१२१ ॥ संज्वलन मान और मायाका कौन बन्धक और कौन अबन्धक है ? ॥ १२१ ॥
मिच्छादिटिप्पहुडि जाव अणियट्टी उवसमा खवा बंधा । अणियट्टि-बादरद्धाए सेसे सेसे संखेज्जे भागे गंतूण बंधो वोच्छिज्जदि । एदे बंधा, अवसेसा अबंधा ॥ १२२ ॥
मिथ्यादृष्टि से लेकर अनिवृत्तिकरण उपशमक व क्षपक तक बन्धक हैं । अनिवृत्ति-बादरकालके शेषके शेषमें संख्यात बहुभाग जाकर बन्ध व्युच्छिन्न होता है । ये बन्धक हैं, शेष अबन्धक हैं ।।
लोभसंजलणस्स को बंधो को अबंधो ? ॥ १२३ ॥ संज्वलन लोभका कौन बन्धक और कौन अबन्धक है ? ॥ १२३ ॥
मिच्छादिट्टिप्पहुडि जाव अणियट्टी उवसमा खवा बंधा। अणियट्टि-बादरद्धाए चरिमसमयं गंतूण बंधो वोच्छिज्जदि । एदे बंधा, अवसेसा अबंधा ॥ १२४ ॥
__ मिथ्यादृष्टिसे लेकर अनिवृत्तिकरण उपशमक व क्षपक तक बन्धक हैं । अनिवृत्तिकरणबादरकालके अन्तिम समयमें जाकर बन्ध व्युच्छिन्न होता है । ये बन्धक हैं, शेष अबन्धक हैं ॥१२४॥
हस्स-रदि-भय-दुगुच्छाणं को बंधो को अबंधो ? ॥ १२५ ॥ हास्य, रति, भय और जुगुप्साका कौन बन्धक है और कौन अबन्धक है ? ॥ १२५॥
मिच्छाइटिप्पहुडि जाव अपुवकरण-पविठ्ठ-उवसमा खवा बंधा । अपुवकरणद्धाए चरिमसमयं गंतूण बंधो वोच्छिज्जदि । एदे बंधा, अवसेसा अबंधा ॥ १२६ ॥
मिथ्यादृष्टिसे लेकर अपूर्वकरण-प्रविष्ट उपशमक व क्षपक तक बन्धक हैं। अपूर्वकरणकालके अन्तिम समयमें जाकर बन्ध व्युच्छिन्न होता है । ये बन्धक हैं, शेष अबन्धक हैं ॥१२६॥
मणुस्साउअस्स को बंधो को अबंधो ? ॥१२७ ॥ मनुष्यायुका कौन बन्धक और कौन अबन्धक है ? ॥ १२७ ॥ मिच्छाइट्ठी सासणसम्माइट्ठी असंजदसम्माइट्ठी बंधा । एदे बंधा, अवसेसा अबंधा॥
मिथ्यादृष्टि, सासादनसम्यग्दृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि बन्धक हैं। ये बन्धक हैं, शेष अबन्धक हैं ॥ १२८॥
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