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छक्खंडागमे खुदाबंधो
समुग्धाद-उववादं णत्थि ॥ ११९ ॥
वैक्रियिकमिश्रकाययोगी जीवोंके समुद्घात और उपपाद पद नहीं होते हैं ॥ ११९ ॥ आहारकायजोगी सत्थाण - समुग्धादेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं १ ॥ १२० ॥ लोगस्स असंखेज्जदिभागो ॥ १२१ ॥
आहारकाययोगी जीव स्वस्थान और समुद्घात पदोंसे कितना क्षेत्र स्पर्श करते हैं ? ॥ १२० ॥ आहारकाययोगी जीव उक्त पदोंसे लोकका असंख्यातवां भाग स्पर्श करते हैं ॥ १२१ ॥
उववादं णत्थि ।। १२२ ॥
आहारकाययोगी जीवोंके उपपाद पद नहीं होता है ॥ १२२ ॥
[ २, ७, ११९
आहारमिस्कायजोगी सत्थाणेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं १ ॥ १२३ ॥ लोगस्स असंखेजदिभागो ।। १२४ ॥
आहार मिश्रकाय योगी जीव स्वस्थान पदोंसे कितना क्षेत्र स्पर्श करते हैं ? ॥ १२३ ॥ स्वस्थान पदोंसे वे लोकका असंख्यातवां भाग स्पर्श करते हैं ॥ १२४ ॥ समुराद उववादं णत्थि ।। १२५ ।।
आहारमिश्रकाययोगी जीवोंके समुद्घात और उपपाद पद नहीं होते हैं ॥ १२५ ॥ कम्म कायजोगीहि केवडियं खेत्तं फोसिदं १ ।। १२६ ।। सव्वलोगो ॥ १२७ ॥ कार्मणकाययोगी जीवों द्वारा कितना क्षेत्र स्पृष्ट है ? ॥ १२६ ॥ कार्मणकाययोगियों द्वारा सर्व लोक पृष्ट हैं ॥ १२७ ॥
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वेदावादेण इत्थवेद - पुरिसवेदा सत्थाणेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं १ ॥ १२८ ॥ लोगस्स असंखेजदिभागो ।। १२९ ।। अट्ठ- चोदसभागा देसूणा || १३० ॥
वेदमार्गणाके अनुसार स्त्रीवेदी और पुरुषवेदी जीव स्वस्थान पदोंकी अपेक्षा कितना क्षेत्र स्पर्श करते हैं ? ॥ १२८ ॥ स्त्रीवेदी और पुरुषवेदी जी स्वस्थान पदोंसे लोकका असंख्यातवां भाग स्पर्श करते हैं ॥ १२९ ॥ अतीत कालकी अपेक्षा वे स्वस्थान पदोंसे कुछ कम आठ बटे चौदह भाग स्पर्श करते हैं ॥ १३० ॥
समुग्वादेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं १ ।। १३१ || लोगस्स असंखेजदिभागो ।। १३२ ।। अट्ठ-चोहसभागा देसूणा सव्वलोगो वा ॥ १३३ ॥
स्त्रीवेदी व पुरुषवेदी जीव समुद्घातोंकी अपेक्षा कितना क्षेत्र स्पर्श करते हैं ? ॥ १३१ ॥ समुद्घातकी अपेक्षा वे लोकका असंख्यातवां भाग स्पर्श करते हैं ॥ १३२ ॥ समुद्घात पदसें अतीत कालकी अपेक्षा वे कुछ कम आठ बटे चौदह भाग अथवा सर्व लोक स्पर्श करते हैं ॥ १३३ ॥ उवादेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? ।। १३४ || लोगस्स असंखेजदिभागो ॥ १३५ ॥ सव्वलोगो वा ॥ १३६ ॥
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