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३, ३० ]. ओघेण बंध-सामित्तपरूवणा
[४६९ मिच्छाइद्विप्पहुडि जाव अणियट्टि-बादरसांपराइयपविट्ठ-उवसमा खवा बंधा । अणियट्टिबादरद्धाए सेसे सेसे संखेज्जाभागं गंतूण बधो वोच्छिज्जदि । एदे बंधा, अवसेसा अबंधा ॥ २४॥
मिथ्यादृष्टि से लेकर अनिवृत्तिकरण-बादर-सांपरायिक प्रविष्ट उपशमक और क्षपक तक बन्धक हैं । अनिवृत्ति-बादरकालके शेषके शेषमें संख्यात बहुभाग जाकर बन्ध व्युच्छिन्न होता है। ये बन्धक हैं, शेष जीव अबन्धक हैं ॥ २४ ॥ .
अभिप्राय यह है कि संज्वलन क्रोधकी बन्धव्युच्छित्ति हो जानेपर जो अनिवृत्तिकरणका काल संख्यातवें भाग मात्र शेष रहता है उसमेंसे संख्यात बहुभाग मात्र काल जाकर एक भाग मात्र कालके शेष रह जानेपर संज्वलन मानका बन्ध व्युच्छिन्न होता है। तत्पश्चात् उसमेंसे भी संख्यात बहुभाग मात्र कालके बीत जानेपर संज्वलन मायाका बन्ध व्युच्छिन्न होता है।
लोभसंजलणस्स को बंधो को अबंधो ? ॥ २५ ॥ संज्वलन लोभका कौन बन्धक है और कौन अबन्धक है ? ॥ २५॥
मिच्छाइट्ठि-प्पहुडि जाव अणियट्टि-बादरसांपराइय-पविट्ठ-उवसमा खवा बंधा । अणियट्टिवादरद्धाए चरिमसमयं गंतूण बंधो वोच्छिज्जदि । एदे बंधा, अवसेसा अबंधा ॥
मिथ्यादृष्टिसे लेकर अनिवृत्ति-बादर-साम्परायिक प्रविष्ट उपशमक और क्षपक तक बन्धक हैं। अनिवृत्तिबादरकालके अन्तिम समयमें जाकर बन्ध व्युच्छिन्न होता है। ये बन्धक हैं, शेष अबन्धक हैं ॥ २६ ॥
हस्स-रदि-भय-दुगुंछाणं को बंधो को अबंधो ? ॥२७॥ हास्य, रति, भय और जुगुप्सा इन प्रकृतियोंका कौन बन्धक है और कौन अबन्धक
मिथ्याइट्टिप्पहुडि जाव अपुबकरण-पविट्ठ-उवसमा खवा बंधा । अपुवकरणद्धाए चरिमसमयं गंतूण बंधो वोच्छिज्जदि । एदे बंधा, अवसेसा अबंधा ॥ २८॥
मिथ्यादृष्टिसे लेकर अपूर्वकरण-प्रविष्ट-उपशमक और क्षपक तक बन्धक हैं। अपूर्वकरणकालके अन्तिम समयमें जाकर उक्त प्रकृतियोंका बन्ध व्युच्छिन्न होता है। ये बन्धक हैं, शेष अबन्धक हैं ॥ २८॥
मणुस्साउअस्स को बंधो को अबंधो ? ॥ २९ ॥ मनुष्यायुका कौन बन्धक है और कौन अबन्धक है ? ॥ २९ ॥
मिच्छाइट्ठी सासणसम्माइट्ठी असंजदसम्माइट्ठी बंधा । एदे बंधा, अबसेसा अबंधा ॥३०॥
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