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४७०] छक्खंडागमे बंध-सामित्त-विचओ
[ ३, ३१ मनुष्यायुके मिथ्यादृष्टि, सासादनसम्यग्दृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि बन्धक हैं। ये बन्धक हैं, शेष अबन्धक हैं ॥ ३० ॥
देवाउअस्स को बंधो को अबधो ? ॥ ३१ ॥ देवायुका कौन बन्धक है और कौन अबन्धक है ? ॥ ३१॥ .
मिच्छाइट्ठी सासणसम्माइट्ठी असंजदसम्माइट्ठी संजदासजदा पमत्तसंजदा अपमत्तसंजदा बंधा । अप्पमत्तसंजदद्धाए संखेज्जदिभागं गंतूण बंधो वोच्छिज्जदि । एदे बंधा, अवसेसा अबंधा ॥ ३२ ॥
मिथ्यादृष्टि, सासादनसम्यग्दृष्टि, असंयतसम्यग्दृष्टि, संयतासंयत, प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयत; ये उसे देवायुके बन्धकं हैं । अप्रमत्तसंयतकालके संख्यातवें भाग जाकर उसका बन्ध व्युच्छिन्न होता है । ये बन्धक हैं, शेष अबन्धक हैं ॥ ३२ ॥
देवगइ-पंचिंदियजादि-चेउब्विय-तेजा-कम्मइयसरीर-समचउरससंठाण-घेउव्वियसरीरअंगोवंग-चण्ण-गंध-रस-फास-देवगइपाओग्गाणुपुचि - अगुरुवलहुव - उवघाद -परघाद - उस्सासपसत्थविहायगइ-तस-बादर-पज्जत्त-पत्तेयसरीर-थिर-सुभ-सुभग-सुस्सर-आदेज्ज-णिमिणणामाणं को बंधो को अबंधो ? ॥३३॥
देवगति, पंचेन्द्रिय जाति, वैक्रियिक, तैजस व कार्मण शरीर, समचतुरस्रसंस्थान, वैक्रियिकशरीरांगोपांग, वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श, देवगतिप्रायोग्यानुपूर्वी, अगुरुअलघु, उपघात, परघात, उच्छ्वास, प्रशस्त विहायोगति, त्रस, बादर, पर्याप्त, प्रत्येकशरीर, स्थिर, शुभ, सुभग, सुस्वर, आदेय और निर्माण; इन नामकर्म प्रकृतियोंका कौन बन्धक है और कौन अबन्धक है ? ॥ ३३ ॥
मिच्छाइटिप्पहुडि जाव अपुल्वकरण-पइट-उवसमा खवा बंधा । अपुव्वकरणद्धाए संखेज्जे भागे गंतूण बंधो वोच्छिज्जदि । एदे बंधा, अवसेसा अबंधा ॥ ३४ ॥
____मिथ्यादृष्टि से लेकर अपूर्वकरण-प्रविष्ट उपशमक व क्षपक तक बन्धक हैं। अपूर्वकरणकालके संख्यात बहुभागोंको विताकर इनका बन्ध व्युच्छिन्न होता है। ये बन्धक हैं, शेष अबन्धक हैं।
आहारसरीर-आहारसरीरअंगोवंगणामाणं को बंधो को अबंधो? ॥ ३५ ॥
आहारशरीर और आहारशरीरअंगोपांग नामकर्मोका कौन बन्धक और कौन अबन्धक है ? ॥ ३५॥
___अप्पमत्तसंजदा अपुव्वकरणपइट्ठउवसमा खवा बंधा । अपुवकरणद्धाए संखेज्जे भागे गंतूण बंधो वोच्छिज्जदि । एदे बंधा, अवसेसा अबंधा ॥ ३६ ॥
अप्रमत्तसंयत और अपूर्वकरण-प्रविष्ट उपशमक व क्षपक बन्धक हैं। अपूर्वकरणकालके संख्यात बहुभागोंको बिताकर उनका बन्ध व्युच्छिन्न होता है । ये बन्धक हैं, शेष अबन्धक हैं ॥३६॥
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