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३, ५५] ओघेण बंध-सामित्तपरूपणा
[ ४७५ तिर्यगायु, तिर्यग्गति, न्यग्रोधपरिमण्डल आदि चार संस्थान, वज्रनाराच आदि चार संहनन, तिर्यग्गतिप्रायोग्यानुपूर्वी, उद्योत, अप्रशस्त विहायोगति, दुर्भग, दुःस्वर, अनादेय और नीचगोत्र; इन प्रकृतियोंका कौन बन्धक है और कौन अबन्धक है ? ॥ ४५ ॥
मिम्छाइट्ठी सासणसम्माइट्ठी बंधा । एदे बंधा, अवसेसा अबंधा ॥४६॥ मिथ्यादृष्टि और सासादनसम्यग्दृष्टि बन्धक हैं । ये बन्धक हैं, शेष नारकी अबन्धक हैं ।
मिच्छत्त-णqसयवेद -हुंडसंठाण - असंपत्तसेवट्टसरीरसंघडणणामाणं को बंधो को अबंधो ? ॥४७॥
____ मिथ्यात्व, नपुंसकवेद, हुण्डसंस्थान और असंप्राप्तामृपाटिकासंहनन इनका कौन बन्धक है और कौन अबन्धक है ? ॥ ४७ ॥
मिच्छाइट्ठी बंधा । एदे बंधा, अवसेसा अबंधा ॥४८॥ मिथ्यादृष्टि बन्धक हैं । ये बन्धक हैं, शेष नारकी अबन्धक हैं ॥ ४८ ॥ मणुस्साउअस्स को बंधो को अबंधो ? ॥ ४९ ॥ मनुष्यायुका कौन बन्धक है और कौन अबन्धक है ? ॥ ४९ ॥ मिच्छाइट्ठी सासणसम्माइट्ठी असंजदसम्भाइट्ठी बंधा । एदे बंधा, अवसेसा अबंधा॥
मिथ्यादृष्टि, सासादनसम्यग्दृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि बन्धक हैं। ये बन्धक है, शेष नारकी अबन्धक हैं ॥ ५० ॥
तित्थयरणामकम्मस्स को बंधो को अबंधो ? ॥५१॥ तीर्थंकर नामकर्मका कौन बन्धक है और कौन अबन्धक है ? ॥ ५१ ॥ असंजदसम्माइट्टी बंधा । एदे बंधा, अवसेसा अबंधा ॥५२॥ असंयतसम्यग्दृष्टि बन्धक हैं । ये बन्धक हैं, शेष नारकी अबन्धक हैं ॥ ५२ ॥ एवं तिसु उवरिमासु पुढवीसु णेयव्वं ॥ ५३ ॥ इस प्रकार बन्धकी यह व्यवस्था उपरिम तीन पृथिवियोंमें भी जानना चाहिये ॥ ५३ ॥
चउत्थीए पंचमीए छडीए पुढवीए एवं चेव णेदव्वं । णवरि विसेसो तित्थयां णत्थि ॥ ५४॥
चौथी, पांचवीं और छठी पृथिवी तक इसी प्रकार जानना चाहिये । विशेषता केवल यह है कि इन पृथिवियोंमें तीर्थंकर प्रकृतिका बन्ध सम्भव नहीं है ॥ ५४ ॥
सत्तमाए पुढवीए णेरड्या पंचणाणावरणीय-छदंसणावरणीय-सादासाद-बारसकसायपुरिसवेद-हस्स-रदि-अरदि-सोग-भय-दुगुंछा-पंचिंदियजादि-ओरालिय-तेजा-कम्मइयसरीरसमचउरससंठाण-ओरालियसरीरअंगोवंग-वज्जरिसहसंघडण-वण्ण-गंध-रस-फास-अगुरुवलहुव
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