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४६८ ] छक्खंडागमे बंध-सामित्त-विचओ
[ ३, १६ मिच्छाइट्ठी बंधा । एदे बंधा, अवसेसा अबंधा ॥१६॥ उक्त सोलह प्रकृतियोंके मिथ्यादृष्टि बन्धक हैं । ये बन्धक हैं, शेष अबन्धक हैं ॥१६॥
अपच्चक्खाणावरणीयकोह-माण-माया-लोभ-मणुसगइ-ओरालियसरीर-ओरालियसरीरअंगोवंग-ज्जरिसहवइरणारायणसंघडण-मणुसगइपाओग्गाणुपुग्विणामाणं को बंधो को अंबंधो? ॥१७॥
... अप्रत्याख्यानावरणीय क्रोध, मान, माया व लोभ, मनुष्यगति, औदारिकशरीर, औदारिकशरीरांगोपांग, वर्षभवज्रनाराचसंहनन और मनुष्यगतिप्रायोग्यानुपूर्वी; इन नौ प्रकृतियोंका कौन बन्धक और कौन अबन्धक है ? ॥ १७ ॥
मिच्छाइट्टिप्पहुडि जाव असंजदसम्माइट्ठी बंधा । एदे बंधा, अवसेसा अबंधा ।
उक्त प्रकृतियोंके मिथ्यादृष्टि से लेकर असंयतसम्यग्दृष्टि तक बन्धक हैं। ये बन्धक हैं, शेष अबन्धक हैं ॥ १८ ॥
पच्चक्खाणावरणीयकोध-माण-माया-लोभाणं को बधो को अबंधो ? ॥ १९ ॥
प्रत्याख्यानावरणीय क्रोध, मान, माया व लोभ; इन चार प्रकतियोंका कौन बन्धक है और कौन अबन्धक है ? ।। १९ ॥
मिच्छाइटिप्पहुडि जाव संजदासंजदा बंधा । एदे बंधा, अवसेसा अबंधा ॥२०॥ मिथ्यादृष्टिसे लेकर संयतासंयत तक बन्धक हैं । ये बन्धक हैं, शेष अबन्धक हैं ॥२०॥
पुरिसवेद-कोधसंजलणाणं को बंधो को अबंधो ? ॥ २१ ॥ 'पुरुषवेद और संज्वलन क्रोधका कौन बन्धक है और कौन अबन्धक है ? ॥ २१ ॥
मिच्छाइटिप्पहुडि जाव अणियट्टि-चादर-सांपराइय-पइट्ठउवसमा खवा बंधा । अणियट्टि-बादरद्धाए सेसे संखेज्जाभागं गंतूण बंधो वोच्छिज्जदि । एदे बंधा, अवसेसा अबंधा ॥ २२ ॥
मिथ्यादृष्टिसे लेकर अनिवृत्तिकरण-बादर-साम्परायिक-प्रविष्ट उपशमक एवं क्षपक तक बन्धक हैं । अनिवृत्ति बादरकालके शेषमें संख्यात बहुभाग जाकर उनका बन्धव्युच्छेद होता है । ये बन्धक हैं, शेष अबन्धक हैं ॥ २२ ॥
अभिप्राय यह है कि अन्तरकरणके करनेपर जो अनिवृत्तिकरणका काल शेष रहता है उसमें संख्यातका भाग देनेपर जो लब्ध हो उतने मात्र उक्त अनिवृत्तिकरणकालके शेष रह जानेपर पुरुषवेद और संचलनक्रोधका बन्ध व्युच्छिन्न होता है ।
माण-मायसंजलणाणं को बंधो को अबंधो ? ॥ २३ ॥ संज्वलन मान और मायाका कौन बन्धक और कौन अबन्धक है ? ॥ २३ ॥
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