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३, १५] ओघेण बंधसामित्तपरूवणा
[ ४६७ उपर्युक्त पच्चीस प्रकृतियोंके मिथ्यादृष्टि और सासादनसम्यग्दृष्टि बन्धक हैं। ये बन्धक हैं, शेष अबन्धक हैं ॥ ८ ॥
णिद्दा-पयलाणं को बंधो को अबंधो ? ॥९॥
निद्रा और प्रचला इन दो दर्शनावरणीय प्रकृतियोंका कौन बन्धक है और कौन अबन्धक है ? ॥ ९॥
मिच्छाइट्टिप्पहुडि जाव अपुबकरण-पविठ्ठ-सुद्धिसंजदेसु उवसमा खवा बंधा । अपुवकरणद्धाए संखेज्जदिमं भागं गंतूण बंधो वोच्छिज्जदि । एदे बंधा, अवसेसा अबंधा ॥
मिथ्यादृष्टि से लेकर अपूर्वकरण-प्रविष्ट-शुद्धिसंयत उपशमक और क्षपक तक बन्धक हैं। अपूर्वकरणकालके संख्यातवें भाग जाकर उनका बन्धव्युच्छेद होता है। ये बन्धक हैं, शेष जीव अबन्धक हैं ॥ १० ॥
सादावेणीयस्स को बंधो को अबंधो ? ॥ ११ ॥ सातावेदनीयका कौन बन्धक और कौन अबन्धक है ? ॥ ११ ॥
मिच्छाइटिप्पहुडि जाव सजोगिकेवलि त्ति बंधा । सजोगिकेवलिअद्धाए चरिमसमयं गंतूण बंधो वोच्छिज्जदि । एदे बंधा, अवसेसा अबंधा ॥ १२ ॥
सातावेदनीयके मिथ्यादृष्टिसे लेकर सयोगिकेवली तक बन्धक हैं । सयोगिकेवलिकालके अन्तिम समयमें जाकर उसका बन्धव्युच्छेद होता है। इतने गुणस्थानवाले जीव उसके बन्धक हैं, शेष अबन्धक हैं ॥ १२ ॥
असादावेदणीय - अरदि-सोग-अथिर - असुह -अजसकित्तिणामाणं को बंधो को अबंधो ? ॥१३॥
असातावेदनीय, अरति, शोक, अस्थिर, अशुभ और अयशःकीर्ति इन छह प्रकृतियोंका कौन बन्धक और कौन अबन्धक है ? ॥ १३ ॥
मिच्छादिद्विप्पहुडि जाव पमत्तसंजदा बंधा । एदे बंधा, अवसेसा अबंधा ॥१४॥ ____ उक्त छह प्रकृतियोंके मिथ्यादृष्टि से लेकर प्रमत्तसंयत तक बन्धक हैं। ये बन्धक हैं, शेष अबन्धक हैं ॥ १४ ॥
मिच्छत्त-णqसयवेद-णिरयाउ-णिरयगइ-एइंदिय-इंदिय-तीइंदिय - चउरिंदयजादिहुंडसंठाण-असंपत्तसेवट्टसरीरसंघडण-णिरयगइपाओग्गाणुपुचि - आदाव-थावर-सुहुम-अपज्जत्तसाहारणसरीरणामाणं को बंधो को अबंधो ? ॥१५॥
___ मिथ्यात्व, नपुंसकवेद, नारकायु, नरकगति, एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय व चतुरिन्द्रिय जाति, हुण्डसंस्थान, असंप्राप्तासृपाटिकासंहनन, नरकगतिप्रायोग्यानुपूर्वी, आताप, स्थावर, सूक्ष्म, अपर्याप्त और साधारणशरीर नामकर्म; इन सोलह प्रकृतियोंका कौन बन्धक है और कौन अबन्धक है ? ॥
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