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१३.] छक्खंडागमे खुद्दाबंधो
[२,७,१८१ ॥१८१ ॥ अट्ठ-चोदसभागा देसूणा ॥ १८२ ॥ सव्वलोगो वा ॥ १८३ ॥
___ चक्षुदर्शनी जीवों द्वारा समुद्घात पदोंसे कितना क्षेत्र स्पृष्ट है ? ॥ १८० ॥ समुद्घात पदोंसे उनके द्वारा लोकका असंख्यातवां भाग स्पृष्ट है ॥ १८१ ॥ अतीत कालकी अपेक्षा उन्हींके द्वारा कुछ कम आठ बटे चौदह भाग स्पृष्ट हैं ॥ १८२॥ अथवा सर्व लोक ही स्पृष्ट है ॥१८३ ।।
उववादं सिया अस्थि सिया णत्थि ।। १८४ ॥ चक्षुदर्शनी जीवोंके उपपाद पद कदाचित् होता है और कदाचित् नहीं भी होता है ॥ लद्धिं पडुच्च अत्थि, णिवत्तिं पडुन पत्थि ॥ १८५ ॥
उनके लब्धिकी अपेक्षा उपपाद पद होता है, किन्तु निर्वृत्तिकी अपेक्षा वह नहीं होता है ॥ १८५॥
जदि लद्धिं पडुच्च अत्थि, केवडियं खेत्तं फोसिदं १ ॥ १८६ ॥ लोगस्स असंखेज्जदिभागो ॥ १८७ ॥ सव्वलोगो वा ।। १८८ ॥
___ यदि लब्धिकी अपेक्षा चक्षुदर्शनी जीवोंके उपपाद पद होता है तो उनके द्वारा उससे कितना क्षेत्र स्पृष्ट है ? ॥ १८६॥ उससे उनके द्वारा लोकका असंख्यातवां भाग स्पृष्ट है ॥१८७॥ अथवा उनके द्वारा उससे अतीत कालकी अपेक्षा सर्व लोक ही स्पृष्ट है ॥ १८८ ॥
अचक्खुदंसणी असंजदभंगो ॥ १८९ ॥ अचक्षुदर्शनी जीवोंकी स्पर्शनप्ररूपणा असंयत जीवोंके समान है ॥ १८९ ॥ ओहिदसणी ओहिणाणिभंगो । १९० ।। अवधिदर्शनी जीवोंकी स्पर्शनप्ररूपणा अवधिज्ञानियोंके समान है ॥ १९० ॥ केवलदंसणी केवलणाणिभंगो ॥ १९१ ॥ केवलदर्शनी जीवोंकी स्पर्शनप्ररूपणा केवलज्ञानियोंके समान है ॥ १९१ ॥ लेस्साणुवादेण किण्हलेस्सिय-णीललेस्सिय-काउलेस्सियाणं असंजदभंगो ॥१९२।।
लेश्यामार्गणाके अनुसार कृष्णलेश्यावाले, नीललेश्यावाले और कापोतलेश्यावाले जीवोंकी स्पर्शनप्ररूपणा असंयत जीवोंके समान है ॥ १९२ ॥
तेउलेस्सियाणं सत्थाणेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? ॥ १९३ ॥ लोगस्स असंखेज्जदिभागो ॥ १९४ ॥ अट्ठ-चोइसभागा वा देसूणा ।। १९५॥
तेजोलेश्यावाले जीवों द्वारा स्वस्थान पदोंसे कितना क्षेत्र स्पृष्ट है ? ॥ १९३ ॥ उनके द्वारा स्वस्थान पदोंसे लोकका असंख्यातवां भाग स्पृष्ट है ॥ १९४ ॥ तथा अतीत कालकी अपेक्षा उनके द्वारा कुछ कम आठ बटे चौदह भाग स्पृष्ट हैं ॥ १९५॥
समुग्घादेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? ।। १९६ ॥ लोगस्स असंखेज्जदिभागो
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