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फोसणाणुगमे दंसणमग्गणा केवलज्ञानी जीवोंकी स्पर्शनप्ररूपणा अपगदवेदियोंके समान है ॥ १६७ ॥ संजमाणुवादेण संजदा जहाक्खाद-विहार-सुद्धिसंजदा अकसाइभंगो ॥ १६८॥
संयममार्गणाके अनुसार संयत और यथाख्यात-विहार-शुद्धिसंयत जीवोंके स्पर्शनकी प्ररूपणा अकषायी जीवोंके समान है ॥ १६८ ॥
सामाइयच्छेदोवट्ठावणसुद्धिसंजद [परिहारसुद्धिसंजद] सुहुमसापराइयसंजदाणं मणपज्जवणाणिभंगो ॥ १६९॥
___सामायिक छेदोपस्थापनाशुद्धिसंयत, परिहारशुद्धिसंपत और सूक्ष्मसाम्परायिकसंयत जीवोंके स्पर्शनकी प्ररूपगा मनःपर्ययज्ञानियोंके समान है ॥ १६९ ॥
संजदासजदा सत्थाणेहि केवडियं खेतं फोसिदं ? ॥ १७० ॥ लोगस्स असंखेज्जदिभागो ॥ १७१ ॥
संयतासंयत जीवोंने स्वस्थान पदोंसे कितना क्षेत्र स्पर्श किया है ? ॥ १७० ॥ स्वस्थान पदोंसे उन्होंने लोकका असंख्यातवां भाग स्पर्श किया है ॥ १७१ ॥
___ समुग्घादेहि केडियं खेत्तं फोसिदं ? ॥ १७२ ॥ लोगस्स असंखेज्जदिभागो ॥ १७३ ॥ छ-चोद्दसभागा देसूणा ।। १७४ ॥
समुद्धातोंकी अपेक्षा संयतासंयत जीवोंने कितना क्षेत्र स्पर्श किया है ? ॥ १७२ ॥ समुद्वातोंकी अपेक्षा उन्होंने लोकका असंख्यातवां भाग स्पर्श किया है ॥१७३ ॥ तथा अतीत कालकी अपेक्षा उक्त जीवोंने कुछ कम छह बटे चौदह भाग स्पर्श किये हैं ॥ १७४ ॥
उववादं णथि ॥ १७५ ॥ संयतासंयत जीवोंके उपपाद पद नहीं होता है ॥ १७५ ॥ असंजदाणं णqसयभंगो ॥ १७६ ॥ असंयत जीवोंके स्पर्शनकी प्ररूपणा नपुंसकवेदियोंके समान है ॥ १७६ ॥
दंसणाणुवादेण चक्खुदंसणी सत्थाणेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं १ ॥ १७७ ॥ लोगस्स असंखेज्जदिभागो ॥ १७८ ॥ अट्ठ-चोद्दसभागा वा देसूणा ।। १७९ ॥
दर्शनमार्गणाके अनुसार चक्षुदर्शनी जीवोंने स्वस्थान पदोंसे कितना क्षेत्र स्पर्श किया है ? ॥ १७७ ।। चक्षुदर्शनी जीवोंने स्वस्थान पदोंसे लोकका असंख्यातवां भाग स्पर्श किया है ॥ १७८ ॥ तथा अतीत कालकी अपेक्षा उन्होंने स्वस्थान पदोंसे कुछ कम आठ बटे चौदह भाग स्पर्श किये हैं ॥ १७९॥
समुग्घादेहि केवडियं खेतं फोसिदं ? ॥ १८० ॥ लोगस्स असंखेज्जदिभागो
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