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फोसणाणुगमे णाणमग्गणा
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उपपादकी अपेक्षा उक्त स्त्रीवेदी और पुरुषवेदी जीवों द्वारा कितना क्षेत्र स्पृष्ट है ? ॥ १३४ ॥ उपपादकी अपेक्षा उक्त जीवों द्वारा लोकका असंख्यातवां भाग स्पृष्ट है ॥ १३५ ॥ अथवा अतीत कालकी अपेक्षा उनके द्वारा उपपाद पदसे सर्व लोक स्पृष्ट है ॥ १३६ ॥
णवंसयवेदा सत्थाण-समुग्धाद-उववादेहि केवडियं खेतं फोसिदं १ ॥ १३७ ।। सब्बलोगो ॥ १३८ ॥
नपुंसकवेदी जीवोंने स्वस्थान, समुद्घात और उपपाद पदोंसे कितना क्षेत्र स्पर्श किया है ? ॥ १३७ । नपुंसकवेदी जीवोंने उक्त पदोंसे सर्व लोक स्पर्श किया है ॥ १३८ ॥ ।
अवगदवेदा सत्थाणेहि केवडियं खेत्तं फोमिदं ? ॥१३९॥ लोगस्स असंखेजदिभागो॥ १४० ॥
अपगतवेदी जीव स्वस्थान पदोंसे कितना क्षेत्र स्पर्श करते हैं ? ॥ १३९ ॥ स्वस्थान पदोंसे वे लोकका असंख्यातवां भाग स्पर्श करते हैं ॥ १४० ॥
समुग्धादेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ॥ १४१ ॥ लोगस्स असंखेज्जदिभागो ॥ १४२ ॥ असंखेज्जा वा भागा ॥ १४३ ॥ सव्वलोगो वा ॥ १४४ ॥
___अपगतवेदियोंने समुद्धातकी अपेक्षा कितना क्षेत्र स्पर्श किया है ? ॥ १४१ ॥ समुद्घातकी अपेक्षा उन्होंने लोकका असंख्यातवां भाग स्पर्श किया है ॥ १४२ ॥ अथवा, लोकका असंख्यात बहुभाग स्पर्श किया है ॥ १४३ ॥ अथवा, सर्व लोक स्पर्श किया है ॥ १४४ ॥
उववाद णत्थि ॥ १४५ ॥ अपगतवेदियोंके उपपाद पद नहीं होता है ॥ १४५ ॥ कसायाणुवादेण कोधकसाई माणकसाई मायकसाई लोभकसाई णबुंसयवेदभंगो॥
कषायमार्गणाके अनुसार क्रोधकषायी, मानकषायी, मायाकषायी और लोभकषायी जीवोंकी स्पर्शनप्ररूपणा नपुंसकवेदियोंके समान है ॥ १४६ ॥
अकसाई अवगदवेदभंगो ॥ १४७ ॥ अकषायी जीवोंकी स्पर्शनप्ररूपणा अपगतवेदियोंके समान है ॥ १४७ ॥
णाणाणुवादेण मदि-अण्णाणी सुद-अण्णाणी सत्थाण-समुग्घाद-उववादेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? ॥ १४८ ॥ सबलोगो ॥१४९ ॥
ज्ञानमार्गणाके अनुसार मतिअज्ञानी और श्रुतअज्ञानी जीवोंने स्वस्थान, समुद्घात और उपपाद पदोंकी अपेक्षा कितना क्षेत्र स्पर्श किया है ? ॥ १४८ ॥ मतिअज्ञानी और श्रुतअज्ञानी जीवोंने उक्त पदोंसे सर्व लोक स्पर्श किया है ॥ १४९ ॥
विभंगणाणी सत्थाणेहि केवडियं खेतं फोसिदं १ ॥१५०॥ लोगस्स असंखेज्जदिभागो ॥१५१ ॥ अट्ठ-चोद्दभागा देसूणा ॥ १५२ ॥
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