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२, ७, ११८ ]
फोसणागमे जोगमगणा
उववादो णत्थि ॥ १०४ ॥
पांचों मनोयोगी और पांचों वचनयोगी जीवोंके उपपाद पद नहीं होता हैं ॥ १०४ ॥ का जोग-ओरालिय मिस्सकायजोगी सत्थाण - समुग्धाद-उववादेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं १ ।। १०५ ॥ सव्वलोगो ॥ १०६ ॥
काययोगी और औदारिकमिश्रकाययोगी जीव स्वस्थान, समुद्घात और उपपाद पदों से कितना क्षेत्र स्पर्श करते हैं ? ॥ १०५ ॥ उपर्युक्त जीव उक्त पदोंसे सर्व लोक स्पर्श करते हैं | ओरालि कायजोगी सत्थाण - समुग्धादेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं १ ।। १०७ ॥ सव्वलोगो ॥ १०८ ॥
औदारिककाययोगी जीव स्वस्थान और समुद्घातकी अपेक्षा कितना क्षेत्र स्पर्श करते हैं ? ॥१०७॥ औदारिककाययोगी जीव स्वस्थान व समुद्घातकी अपेक्षा सर्व लोक स्पर्श करते हैं ॥ उववादं णत्थि ॥ १०९ ॥
औदारिककाययोगियोंके उपपाद पद नहीं होता है ॥ १०९ ॥
asooratयजोगी सत्याणेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं १ ॥ ११० ॥ लोगस्स असंखेज्जदिभागो ।। १११ ॥ अट्ठ- चोहसभागा वा देखणा ॥ ११२ ॥
वैक्रियिककाययोगी जीव स्वस्थान पदोंसे कितना क्षेत्र स्पर्श करते हैं ? ॥ ११० ॥ वैक्रियिककाययोगी जीव स्वस्थान पदोंसे लोकका असंख्यातवां भाग स्पर्श करते हैं ॥ १११ ॥ अतीत कालकी अपेक्षा वे कुछ कम आठ बटे चौदह भाग स्पर्श करते हैं ॥ ११२ ॥
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समुग्धादेण केवडियं खेत्तं फोसिदं १ ।। ११३ || लोगस्स असंखेज्जदिभागो ॥ ११४ ॥ अट्ठ-तेरह चोदसभागा देसूणा ।। ११५ ।।
उक्त जीव समुद्घातकी अपेक्षा कितना क्षेत्र स्पर्श करते हैं ! ॥ ११३ ॥ समुद्घातकी अपेक्षा वे लोकका असंख्यातवां भाग स्पर्श करते हैं ॥ ११४ ॥ तथा अतीत कालकी अपेक्षा वे कुछ कम आठ बटे चौदह भाग और तेरह बटे चौदह भाग स्पर्श करते हैं ॥ ११५ ॥
उववादं णत्थि ॥ ११६ ॥
वैक्रियिककाययोगी जीवोंके उपपाद पद नहीं होता है ॥ ११६ ॥
छ. ५४
वियस्सिकायजोगी सत्थाणेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं १ ॥ ११७ ॥ लोगस्स असंखेजदिभागो ।। ११८ ।।
वैक्रियिकमिश्रकाययोगी जीव स्वस्थान पदोंसे कितना क्षेत्र स्पर्श करते हैं ! ॥ ११७ ॥ वैक्रियिकमिश्रकाययोगी जीव स्वस्थान पदोंसे लोकका असंख्यातवां भाग स्पर्श करते हैं ॥ ११८ ॥
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