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२, ७, ९०] फोसणाणुगमे कायमग्गणा
[४२३ समुद्धात व उपपाद पदोंसे उनके द्वारा लोकका असंख्यातवां भाग स्पृष्ट है ॥ ७५ ॥ अथवा उक्त पदोंकी अपेक्षा उनके द्वारा सर्व लोक स्पृष्ट है ॥ ७६ ॥
बादरपुढवि-चादरआउ-बादरतेउ-बादरवणप्फदिकाइयपत्ते यसरीरपज्जत्ता सस्थाहि केवडियं खेतं फोसि ॥ ७७ ॥ लोगस्स असंखेन्जदिभागो ॥ ७८ ॥
बादर पृथिवीकायिक, बादर अप्कायिक, बादर तेजकायिक और बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर पर्याप्त जीव स्वस्थान पदोंकी अपेक्षा कितना क्षेत्र स्पर्श करते हैं ? ॥ ७७ ॥ उपर्युक्त जीव स्वस्थान पदोंकी अपेक्षा लोकका असंख्यातवां भाग स्पर्श करते हैं ॥ ७८ ॥
समुग्धाद-उववादेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? ॥ ७९ ॥ लोगस्स असंखेज्जदिभागो । ८० ॥ सबलोगो वा ॥ ८१ ॥
समुद्घात व उपपाद पदों की अपेक्षा उक्त जीवोंके द्वारा कितना क्षेत्र स्पृष्ट है ? ॥७९॥ समुद्धात व उपपादकी अपेक्षा उनके द्वारा लोकका असंख्यातवां भाग स्पृष्ट है ॥ ८० ॥ अथवा समुद्धात व उपपादकी अपेक्षा उनके द्वारा सर्व लोक स्पृष्ट है ॥ ८१ ॥
बादरवाउक्काइया तस्सेव अपज्जत्ता सत्थाणेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? ॥८२॥ लोगस्स संखेज्जदिभागो ॥ ८३ ॥
बादर वायुकायिक और उनके ही अपर्याप्त जीव स्वस्थान पदोंसे कितना क्षेत्र स्पर्श करते हैं ? ॥ ८२ ॥ उपर्युक्त जीव स्वस्थान पदोंसे लोकका संख्यातवां भाग स्पर्श करते हैं ॥८३ ॥ __ समुग्धाद-उववादेहि केवडियं खेतं फोसिदं ? ॥ ८४ ॥ सबलोगो वा ।। ८५॥
उपर्युक्त जीव समुद्धात व उपपाद पदोंसे कितना क्षेत्र स्पर्श करते हैं ? ॥ ८४ ॥ वे समुद्धात और उपपाद पदोंसे सर्व लोक स्पर्श करते हैं ॥ ८५ ॥
सूत्रमें जो ‘वा' शब्द प्रयुक्त है उससे यह अभिप्राय ग्रहण करना चाहिये कि बादर वायुकायिक और बादर वायुकायिक अपर्याप्त वेदना, कषाय और वैक्रियिक समुद्घातोंकी अपेक्षा तीन लोकोंके संख्यातवें भागको तथा मनुष्य और तिर्यंच लोकसे असंख्यातगुणे क्षेत्रका स्पर्श करते हैं । मारणान्तिक और उपपाद पदोंसे वे सर्व लोकका स्पर्श करते हैं।
बादरवाउपज्जत्ता संस्थाणेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? ।। ८६ ॥ लोगस्स संखेज्जदिभागो ।। ८७ ॥
__ बादर वायुकायिक पर्याप्त जीव स्वस्थान पदोंसे कितना क्षेत्र स्पर्श करते हैं ? ॥ ८६ ॥ स्वस्थान पदोंसे वे लोकका संख्यातवां भाग स्पर्श करते हैं ॥ ८७ ॥
समुग्धाद-उववादेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? ।। ८८ ॥ लोगस्स संखेज्जदिभागो ॥ ८९ ॥ सव्वलोगो वा ॥ ९० ॥
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