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४२४ } छक्खंडागमे खुद्दाबंधो
[ २, ७, ९१ समुद्घात और उपपाद पदोंकी अपेक्षा उक्त जीवों द्वारा कितना क्षेत्र स्पृष्ट है ? ॥८८॥ उनके द्वारा उक्त पदोंकी अपेक्षा लोकका संख्यातवां भाग रपृष्ट है ।। ८९ ॥ अथवा समुद्घात व उपपादसे उनके द्वारा सर्व लोक स्पृष्ट है ॥ ९० ॥
वणप्फदिकाइया णिगोदजीवा सुहुमवणप्फदिकाइया सुहुमणिगोदजीवा तस्सेव पज्जत्ता अपज्जत्ता सत्थाण-समुग्घाद-उववादेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? ॥९१ ॥ सबलोगो ॥ ९२ ॥
वनस्पतिकायिक, निगोद जीव, सूक्ष्म वनस्पतिकायिक और सूक्ष्म निगोद जीव तथा उनके ही पर्याप्त व अपर्याप्त जीव स्वस्थान, समुद्घात और उपपाद पदोंसे कितना क्षेत्र स्पर्श करते हैं ? ॥ ९१ ॥ उपर्युक्त जीव उक्त पदोंसे सर्व लोक स्पर्श करते हैं ॥ ९२ ॥
बादरवणप्फदिकाइया बादरणिगोदजीवा तस्सेव पज्जत्ता अपज्जत्ता सत्थाणेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? ॥ ९३ ॥ लोगस्स असंखेज्जदिभागो ॥ ९४ ॥
बादर वनस्पतिकायिक व बादर निगोद जीव तथा उनके ही पर्याप्त व अपर्याप्त जीव स्वस्थान पदोंसे कितना क्षेत्र स्पर्श करते हैं ? ॥ ९३ ॥ उपर्युक्त जीव स्वस्थान पदोंसे लोकका असंख्यातवां भाग स्पर्श करते हैं ॥ ९४ ॥
समुग्घाद-उववादेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? ॥९५ ॥ सव्वलोगो ॥९६ ॥
समुद्घात व उपपाद पदोंसे उक्त जीवों द्वारा कितना क्षेत्र स्पृष्ट है ? ॥९५॥ समुद्घात व उपपाद पदोंसे उनके द्वारा सर्व लोक स्पृष्ट है ॥ ९६ ॥
तसकाइय-तसकाइयपज्जत्ता अपज्जत्ता पंचिंदिय-पचिंदियपज्जत्त-अपज्जत्तभंगो॥
त्रसकायिक, त्रसकायिक पर्याप्त और त्रसकायिक अपर्याप्त जीवोंके स्पर्शनकी प्ररूपणा पंचेन्द्रिय, पंचेन्द्रिय पर्याप्त और पंचेन्द्रिय अपर्याप्त जीवोंके समान है ॥ ९७ ॥
जोगाणुवादेण पंचमणजोगि-पंचवचिजोगी सत्थाणेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? ॥९८ ॥ लोगस्स असंखेज्जदिभागो ॥ ९९ ॥ अट्ठ-चोदसभागा वा देसूणा ॥ १०० ॥
योगमार्गणानुसार पांच मनोयोगी और पांच वचनयोगी जीव स्वस्थान पदोंसे कितना क्षेत्र स्पर्श करते हैं ? ॥ ९८ ॥ उपर्युक्त जीव स्वस्थान पदोंसे लोकका असंख्यातवां भाग स्पर्श करते हैं ॥९९॥ अथवा वे स्वस्थान पदोंसे कुछ कम आठ बटे चौदह भाग स्पर्श करते हैं ॥१००॥
समुग्धादेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? ॥ १०१ ॥ लोगस्स असंखेज्जदिभागो ॥ १०२ ॥ अट्ठ-चोदसभागा देसूणा सव्वलोगो वा ।। १०३ ॥
उपर्युक्त जीवों द्वारा समुद्घातकी अपेक्षा कितना क्षेत्र स्पृष्ट है ? ॥ १०१ ॥ उपयुक्त जीवों द्वारा समुद्धातकी अपेक्षा लोकका असंख्यातवां भाग स्पृष्ट है ॥ १०२ ॥ अथवा, कुछ कम आठ बटे चौदह भाग या सर्व लोक स्पृष्ट है ॥ १०३ ॥
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