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छक्खंडागमे खुदाबंधो
[ २, ६, ८६
आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी और अवधिज्ञानी जीव स्वस्थान, समुद्घात और उपपादसे कितने क्षेत्रमें रहते हैं ? ॥ ८४ ॥ उक्त पदोंसे वे लोकके असंख्यातवें भागमें रहते हैं ॥ केवलणाणी सत्थाणेण केवडिखेत्ते १ ।। ८६ ।। लोगस्स असंखेज्जदिभागे ॥८७॥ केवलज्ञानी जीव स्वस्थानकी अपेक्षा कितने क्षेत्रमें रहते हैं ? ॥ ८६ ॥ केवलज्ञानी जीव स्वस्थान से लोकके असंख्यातवें भागमें रहते हैं ॥ ८७ ॥
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मुग्धादेण वडिखे ते १ ।। ८८ ।। लोगस्स असंखेज्जदिभागे असंखेज्जेसु वा भागेसु सव्वलोगे वा ॥ ८९ ॥
समुद्घातकी अपेक्षा केवलज्ञानी जीव कितने क्षेत्रमें रहते हैं ? ॥ ८८ ॥ समुद्घातकी अपेक्षा वे लोकके असंख्यातवें भाग में, अथवा असंख्यात बहुभागों में, अथवा सर्व लोकमें रहते हैं ॥ ८९ ॥
उववादं णत्थि ॥ ९० ॥
केवलज्ञानियोंके उपपाद पद नहीं होता ॥ ९० ॥
संजमाणुवादेण संजदा जहाक्खाद - विहार- सुद्धिसंजदा अकसाईभंगो ।। ९१ ॥ संयममार्गणा के अनुसार संयत और यथाख्यात - विहार-शुद्धिसंयत जीवोंके क्षेत्रकी प्ररूपणा अकषायी जीवोंके समान है ? ॥ ९१ ॥
सामाइयच्छेदोवडावणसुद्धिसंजदा परिहार- सुद्धिसंजदा सुहुमसांपराइय-सुद्धिसंजदा संजदासंजदा मणपज्जवणाणिभंगो ।। ९२ ।।
सामायिक-छेदोपस्थापनाशुद्धिसंयत, परिहार-शुद्धिसंयत, सूक्ष्मसाम्परायिक शुद्धिसंयत और संयतासंयत जीवोंके क्षेत्रकी प्ररूपणा मन:पर्ययज्ञानियोंके समान है ।। ९२ ॥
असंजदा णवुंसयभंगो ॥ ९३ ॥
असंयत जीवोंका क्षेत्र नपुंसकवेदियोंके समान है ॥ ९३ ॥
दंसणाणुवादेण चक्खुदंसणी सत्थाणेण समुग्धादेण केवडिखेत्ते ? ॥ ९४ ॥ लोगस्स असंखेज्जदिभागे ।। ९५ ।।
दर्शन मार्गणा के अनुसार चक्षुदर्शनी जीव स्वस्थानसे और समुद्घातसे कितने क्षेत्रमें रहते हैं ? ॥ ९४ ॥ चक्षुदर्शनी जीव उक्त दो पदोंसे लोकके असंख्यातवें भागमें रहते हैं ॥ ९५ ॥ उववादं सिया अस्थि सिया णत्थि । लद्धिं पडुच्च अत्थि, णिव्यत्तिं पडुच्च णत्थि । जदि लद्धिं पहुच अस्थि केवडिखेत्ते ? ।। ९६ ॥
चक्षुदर्शनी जीवोंके उपपाद पद कथंचित् होता है, और कथंचित् नहीं भी होता है । लब्धिकी अपेक्षा उनके उपपाद पद होता है, किन्तु निर्वृतिकी अपेक्षा वह नहीं होता । यदि
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