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२, ६, ११०]
खेत्ताणुगमे सम्मत्तमग्गणा लब्धिकी अपेक्षा उनके उपपाद पद होता है तो उसकी अपेक्षा वे कितने क्षेत्रमें रहते हैं? ॥९६॥
लोगस्स असंखेज्जदिभागे ।। ९७ ॥ उपपादकी अपेक्षा चक्षुदर्शनी जीव लोकके असंख्यातवें भागमें रहते हैं ॥ ९७ ॥
अचक्खुदंसणी असंजदभंगो ॥ ९८ ॥ ओधिदंसणी ओधिणाणिभंगो ।। ९९ ॥ केवलदसणी केवलणाणिभंगो ॥ १०० ॥
__ अचक्षुदर्शनियोंका क्षेत्र असंयत जीवोंके समान है ॥ ९८ ॥ अवधिदर्शनियोंका क्षेत्र अवधिज्ञानियोंके समान है ॥९९॥ तथा केवल दर्शनियोंका क्षेत्र केवलज्ञानियोंके समान है ॥१००॥
लेस्साणुवादेण किण्हलेस्सिया णीललेस्सिया काउलेस्सिया असंजदभंगो ॥१०१॥
लेश्यामार्गणाके अनुसार कृष्णलेश्यावाले, नीललेश्यावाले और कायोतलेश्यावाले जीवोंका क्षेत्र असंयतोंके समान है ॥ १०१॥
तेउलेस्सिय-पम्मलेस्सिया सत्थाणेण समुग्घादेण उववादेण केवडिखेत्ते ॥१०२॥ लोगस्स असंखेज्जदिमागे ॥ १०३ ॥
तेजोलेश्यावाले और पद्मलेश्यावाले जीव स्वस्थान, समुद्धात और उपपादसे कितने क्षेत्रमें रहते हैं ? ॥१०२॥ उक्त दो लेश्यावाले जीव इन पदोंसे लोकके असंख्यातवें भागमें रहते हैं ।
सुक्कलेस्सिया सत्थाणेण उववादेण केवडिखेते? ॥१०४॥ लोगस्स असंखेज्जदिभागे ।। १०५ ॥
शुक्ललेश्यावाले जीव स्वस्थान और उपपाद पदोंसे कितने क्षेत्रमें रहते हैं ? ॥ १०४ ॥ उक्त दो पदोंसे वे लोकके असंख्यातवें भागमें रहते हैं ॥ १०५ ॥
___ समुग्धादेण लोगस्स असंखेज्जदिमागे असंखेज्जेसु वा भागेसु सबलोगे वा ।।
- शुक्ललेश्यावाले जीव समुद्घातकी अपेक्षा लोकके असंख्यात भागमें, अथवा असंख्यात बहुभागोंमें, अथवा सर्व लोकमें रहते हैं ॥ १०६ ॥
भवियाणुवादेण भवसिद्धिया अभवसिद्धिया सत्थाणेण समुग्धादण उववादेण केवडिखेते ? ॥ १०७ ॥ सबलोगे ॥ १०८ ।।
__ भव्यमार्गणाके अनुसार भव्यसिद्धिक और अभव्यसिद्धिक जीव स्वस्थान, समुद्घात और उपपादकी अपेक्षा कितने क्षेत्रमें रहते हैं ? ॥ १०७ ॥ उक्त तीनों पदोंसे वे सर्व लोकमें रहते हैं ।
सम्मत्ताणुवादेण सम्मादिट्ठी खइयसम्मादिट्ठी सत्थाणेण उववादेण केवडिखेत्ते ? ॥ १०९ ॥ लोगस्स असंखेज्जदिभागे ।। ११० ॥
सम्यक्त्वमार्गणाके अनुसार सम्यग्दृष्टि और क्षायिकसम्यग्दृष्टि जीव स्वस्थान और उपपादकी अपेक्षा कितने क्षेत्रमें रहते हैं ? ॥ १०९ ॥ ऊक्त दो पदोंसे वे लोकके असंख्यातवें भागमें रहते हैं ॥ ११० ॥
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