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छक्खंडागमे खुदाबंधो
[ २, ७, ३९
उपपाद पदकी अपेक्षा उक्त देवों द्वारा कितना क्षेत्र स्पृष्ट है ? उपपाद पदकी अपेक्षा उनके द्वारा लोकका असंख्यातवां भाग, अथवा चौदह भागोंमें कुछ कम डेढ़ भाग प्रमाण क्षेत्र पृष्ट है ॥ ३८ ॥
४२० ]
सणक्कुमार जाव सदर-सहस्सार - कप्पवासियदेवा सत्थान समुग्धादेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं १ ।। ३९ ।। लोगस्स असंखेज्जदिभागो अट्ठ- चोहसभागा वा देसूणा ॥ ४० ॥ सनत्कुमारसे लेकर शतार - सहस्रार कल्प तकके देवों द्वारा स्वस्थान और समुद्घातकी अपेक्षा कितना क्षेत्र स्पृष्ट है ? ॥ ३९ ॥ उपर्युक्त देवों द्वारा स्वस्थान व समुद्घातकी अपेक्षा लोकका असंख्यातवां भाग अथवा कुछ कम आठ बटे चौदह भाग स्पृष्ट हैं ॥ ४० ॥
उवादेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं १ ।। ४१ ।। लोगस्स असंखेज्जदिभागो, तिण्णि-अद्भुङ-चत्तारि-अद्भवंचम- पंच- चोदसभागा वा देखणा ॥
४२ ॥
उक्त देवों द्वारा उपपादकी अपेक्षा कितना क्षेत्र स्पृष्ट है ? ॥ ४१ ॥ उपपाद पदकी अपेक्षा उनके द्वारा लोकका असंख्यातवां भाग अथवा क्रमसे चौदह भागों में कुछ कम तीन, साढ़े तीन, चार, साढ़े चार और पांच भाग स्पृष्ट हैं ॥ ४२ ॥
आणद जाव अच्चुदकप्पवासियदेवा सत्थाण- समुग्धादेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? || ४३ || लोगस्स असंखेज्जदिभागो छ - चोदसभागा वा देसूणा ॥ ४४ ॥
आनतसे लेकर अच्युत कल्प तकके विमानवासी देवों द्वारा स्वस्थान व समुद्घात पदोंकी अपेक्षा कितना क्षेत्र स्पृष्ट है ? ॥ ४३ ॥ उपर्युक्त देवों द्वारा स्वस्थान व समुदूधात पदोंकी अपेक्षा लोकका असंख्यातवां भाग अथवा कुछ कम छह बटे चौदह भाग स्पृष्ट हैं ? ॥ ४४ ॥ उववादेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? ।। ४५ ।। लोगस्स असंखेज्जदिभागो अद्धछट्ट-छचोदस भागा वा देखणा ।। ४६ ।।
उपर्युक्त देवों द्वारा उपपादकी अपेक्षा कितना क्षेत्र स्पृष्ट है ! ॥ ४५ ॥ उपपादकी अपेक्षा उक्त देवों द्वारा लोकका असंख्यातवां भाग अथवा चौदह भागों में से कुछ कम साढ़े पांच या छह भाग स्पृष्ट हैं ॥ ४६ ॥
णवगेवज्ज जाव सव्वट्टसिद्धिविमाणवासियदेवा सत्थाण-समुग्धाद-उववादेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं १ ।। ४७ ।। लोगस्स असंखेज्जदिभागो ।। ४८ ॥
नौ ग्रैवेयकोंसे लेकर सर्वार्थसिद्धि विमान तकके विमानवासी देवों द्वारा स्वस्थान, समुद्घात और उपपाद पदोंसे कितना क्षेत्र स्पृष्ट है ? ॥ ४७ ॥ उक्त पदोंसे उनके द्वारा लोकका असंख्यातवां भाग स्पृष्ट है ॥ ४८ ॥
इंदियाणुवादेण एइंदिया सुहुमेइंदिया पज्जत्ता अपज्जन्त्ता सत्थाण- समुग्धादउववादेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं १ ।। ४९ ।। सव्वलोगो ।। ५० ।।
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